काकोरी काण्ड

अंग्रेजों को सबक सिखाने,

किया था यह एक काम।

थर-थर काँप गए गोरे,

काकोरी काण्ड था नाम।।


राज फिरंगी चल ना सके अब,

दुनिया को यह बतलाए।

एक ही वार में गोरों को,

दिन में तारे दिखलाए।।


सूत्रधार बने बिस्मिल, 

साथी थे अशफाक उल्ला।

राजेन्द्र लाहिड़ी और आजाद ने,

सच योजना को कर डाला।।


सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन,

चल पड़ी थी है जैसे ही

किया ट्रेन पर कब्जा,

दिखायी दिलेरी गजब की।।


निरुद्देश्य चली जब माउजर,

एक पैसेंजर की जान गयी।

आजादी की लड़ाई के खातिर थी,

धन की महती आवश्यकता थी।।


लूट खजाना गोरों का,

भाग फिरंगी दम से कहा।

9 अगस्त 1925 की घटना,

एक साहसिक अभियान रहा।।


पकड़े चालीस क्रांतिकारी,

लखनऊ जेल भेजे गए।

भारत माँ के बहादुर बेटे,

माँ के लिए कुर्बान हुए।।


हुआ जेल में प्रस्फुटित,

'रंग दे बसंती' पावन गान

हुआ नवरक्त का संचार,

आया जैसे नव विहान।।


'ज्योति' जलायी देश प्रेम की,

हिल गई गोरों की चूलें।

नमन अमर योद्धाओं को,

उन दीवानों को ना भूलें।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।

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