खुदीराम बोस
शहीदों के बलिदान की कहानी सुनाती हूँ,
एक अमर सेनानी की कथा सुनाती हूँ।
हँसते-हँसते झूल गए फाँसी के फंदे पर,
खुदीराम बोस की वीरता से परिचय कराती हूँ।।
3 दिसम्बर1889 मिदनापुर में पैदा हुए,
माँ लक्ष्मी प्रिया देवी पिता त्रैलोक्य नाथ बोस हुए।
देश के लिए कुछ करने का जज्बा था हावी,
स्वतंत्रता के लिए जीवन अर्पित किए।।
इतिहास बताता है कम उम्र के थे युवा,
बंगाल के जुलाहों ने धोती पर छाप दिया।
1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया,
किंग्सफोर्ड की बग्गी पर बम फेंक दिया।।
मुजफ्फरपुर जेल में मजिस्ट्रेट ने आदेश सुनाया,
फाँसी पर लटकाने का कानून था आया।
एक शेर की भाँति सूली पर चढ़ गए,
18 वर्ष की उम्र थी जब शहादत कर दिया।।
देशभक्ति की लहर पूरे देश में फैल गई,
साहसिक बलिदान की एक छाप पड़ गई।
लोकगीतों के रूप में जीवित है बलिदान,
11 अगस्त 1908 मुजफ्फरपुर में साँस थम गई।।
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