सच्चे देशभक्त कौन
वे लोग धरा पर दूजे थे
जो चहुँ-दिशा में गूँजे हैं।
वे देशप्रेम से व्याकुल थे
हम छल, दंभ-द्वेष में डूबे हैं।।
कहाँ मानते हैं हम खुद को
इस देश के सच्चे अधिकारी?
हम पाश्चात्य सभ्यता को ही
माने हैं सच्चा हितकारी।।
धन धान्य से है परिपूर्ण मगर
अब स्वाभिमान का ध्यान नहीं।
सब भूल चुके हैं वेद-ज्ञान
और संस्कृति का है मान नहीं।।
नीच-ऊँच और लिंग-भेद में
व्यस्त बहुत है सभी यहाँ।
परिचायक जो है राष्ट्र-प्रेम के
उन कर्मों पर है ध्यान कहाँ?
विलीन हुए वे मातृभूमि से
पर दे गए हमको स्वर्ण-खरा।
'आजादी' को बेमोल न जानो
है रक्त बहुत है इसे चढ़ा।।
रचयिता
गरिमा सिंह चंदेल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चन्द्रवल किशनपुर,
विकास खण्ड-मैथा,
जनपद-कानपुर देहात।
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