भाग फिरंगी
बिगुल बजाया था जब,
गांधी ने स्वराज्य को।
हिला दिया था जड़ से,
अंग्रेजी साम्राज्य को।
'अंग्रजों भारत छोड़ो',
है इसमें तेरी भलाई।
भाग जा फिरंगी अब,
शामत तेरी है आई।
'करेंगे या मरेंगे' हम,
पीछे नहीं हटेंगे।
देश की आज़ादी हम,
लेकर के ही रहेंगे।
सुन नारे ये जोशीले,
जन-जन जल उठा था।
देश में आजादी का,
शोला भड़क उठा था।
औकात फिरंगियों ने,
अपनी फिर दिखाई।
गांधी को डाल जेल में,
थी नीचता दिखाई।
करके हवाई हमले,
हमको था डराया।
गोलियाँ बरसा कर,
दुश्मन था मुस्काया।
भड़क उठे थे शेर तब,
जो सोए हुए थे अब तक।
लड़े थे लाल माई के,
आजादी ना मिली जब तक।
फौज हिंदुस्तानियों की
आंदोलन में कूद पड़ी।
माताएँ, बहनें भी सब,
संग सबके थीं खड़ी।
किसे थी परवाह अब,
अपनी जान की।
करनी थी रक्षा अब तो,
भारत के मान की।
ये दौर 'अगस्त क्रांति',
जग में कहलाया।
अंग्रेजी हुकूमत को,
भारत से भगाया।
गुलामी की जंजीरों से,
आजाद हुई माँ।
शहीदों की शहादत पर,
बलिहारी हुई माँ।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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