हिरोशिमा
हिरोशिमा नगरी में एक दिन,
हुआ तेज धमाका था।
सुन आवाज धमाके की,
कलेजा मानव का काँपा था।
देख तबाही का मंजर,
मानवता घबराई थी।
ना जाने किस करनी की,
निर्दोषों ने सजा पाई थी।
चिथड़े-चिथड़े हुए नर नारी,
बच्चों की लाशों की ढेरी थी।
घर बंगले सब खाक हुए,
ये आफत बड़ी घनेरी थी।
नफरत की भीषण ज्वाला में,
हिरोशमा फिर धधक उठा।
अमेरिका के घिनौने कृत्य पर,
जग सारा फिर भड़क उठा।
लाखों निर्दोषों ने तब से,
अब तक जान गँवाई है।
कैंसर और अपंगता सी,
बीमारियाँ जन्म से पाईं हैं।
मानव है मानव का दुश्मन,
ये मानव ने दिखलाया था।
है मानव कितना विनाशी,
ये करके दिखलाया था।
युद्ध से हल ना निकले कोई,
बात है ये बिल्कुल पक्की है।
बर्बादी का माई बाप है युद्ध,
इतिहास की गवाही सच्ची है।
हुई भूल जो अब तक हमसे,
आगे कभी ना करनी है।
हर मुश्किल का हल है चर्चा,
जो सदा शान्ति से करनी है।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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