स्वतन्त्र दास्ताँ
बनाओ ऐसा रास्ता,
खिल जाए गुलिस्ताँ,
जीवन की बगिया,
बन जाए एक दास्ताँ।
हिन्द का हो जज़्बा,
मुस्कुरा दे कारवाँ,
जीवन की श्रृंखला,
बन जाये खुशियों भरी दास्ताँ।
स्वतन्त्रता का रास्ता,
है संघर्षों का समाँ,
संघर्षों से हो जाए वास्ता,
संघर्ष ही लिखते हैं दास्ताँ।
मासूमों का चेहरा,
चूम ले आसमाँ,
देख कुदरत का करिश्मा,
प्यार से भर जाए मधुर दास्ताँ।
दिन हो ऐसा,
जब याद आयें कुर्बानियाँ,
जीवंत हो उठे हर लम्हा,
और इबारतों की दास्ताँ।।
रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।
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