रक्षाबन्धन
आज राखी के दिन, मुझे भाई याद आ गया,
वो भाई का प्यार भरा सिर पर हाथ व दुलार याद आ गया।
कहाँ चले गए वो बचपन के दिन, जब सुन्दर राखियाँ लाते थे,
बडे चाव और स्नेह से, भाई की कलाईयाँ सजाते थे।।
आज रिश्ते मोबाइल पर निभाये जाते हैं,
लेन-देन का हिसाब रख कर त्योहार मनाये जाते हैं।
हर भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन निभाता था,
सभी बहनों की लाज और सम्मान बचाने का संकल्प करता था।।
पर आज वो वचन और सम्मान कहीं खो गए हैं,
जब भाई-भाई न रहकर समाज में दिखाने भर के रह गए हैं।
अरे सँभालो! इन खोखले और बेजान रिश्तों को,
लाओ फिर से कर्मवती व हुमायूँ के जैसे फरिश्तों को।।
मुझे विश्वास है, हाँ वो दिन फिर से लौटेंगे,
जो राखी और रक्षाबन्धन का मोल जानते थे।
और सभी रिश्तों में सबसे ज्यादा पवित्र,
इस भाई-बहन के रिश्ते को मानते थे।।
मुझे विश्वास है क्यूँकि आज भी मेरे भाई का दिल?
उसकी अपनी इस नटखट बहन के पास है।।
रचयिता
रश्मि शर्मा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय- सिहोरा (द्वितीय),
विकास खण्ड- राया,
जनपद- मथुरा।
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