स्वतंत्रता अक्षुण्य रहे

शहीदों की स्वर्णिम विरासत अक्षुण्य रखूँगी,

अवनि और अंबर डिगे पर मैं ना डिगूँगी।

स्वर्ग में जाकर मोक्ष पाने का नहीं अरमान,

माँ भारती की चरण धूल माथे सजाऊँगी।।


शान हमारी तिरंगा है झुकने नहीं दूँगी,

साँसों में घुली देशभक्ति की खुशबू मिटने ना दूँगी।

बहते हुए रक्त में एक जोश है भरा,

धर्म, जाति के आधार पर देश ना बँटने दूँगी।।


देखकर भारत माता की दशा नयन हमारे सजल हैं,

देशभक्तों के होते हुए माता क्यों आज विकल है।

हर चुनौती का सामना डटकर हम करेंगे,

स्वतंत्रता को बनाए रखने के प्रयास ना विफल हैं।।


ईर्ष्या, द्वेष से मुक्त हो जन, रहें प्रेम से सभी,

दुर्गम पथ भी हमारा धैर्य न डिगाए कभी।

चूमेंगी एक दिन चरण हमारे ये मंजिलें,

जागो! खुदीराम, तात्या, भगत, बिस्मिल बनो सभी।।


भारत माँ पुकारती, शेर माँ के जाग जाओ,

मौन निमंत्रण मैं देती तुम पुत्रों पहचान जाओ।

बलिदानियों के शौर्य, पराक्रम का अरुणोदय करो,

राष्ट्र हैं प्राण हमारे, आन, बान इस पर बलि जाओ।।


नमन करूँ ऐ देश, तुम्हारी इस मिट्टी में जन्म लिया,

शत- शत प्रणाम देशभक्तों को जिन्होंने जीवन दिया।

ऋणी हैं इस देश की अन्न, जल और रज के,

रक्त का संचार दे जीवन का आगाज किया।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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