आजादी का एक ही दिन - क्यों
आजादी के दिन ही क्यों हम,
याद देश की करते हैं।
एक ही दिन क्या साँसें लेकर,
जीवन का घट भरते हैं।
एक ही दिन क्या कोख में रखकर,
मात जन्म दे देती है।
एक ही दिन में प्रकृति क्या,
फल फूल सृजित कर देती है।
एक ही दिन में ऋतुएँ अपना,
चक्र पूर्ण न कर पातीं।
एक ही दिन मिलता तो वसुधा,
प्यासी हरदम रह जाती।
एक ही दिन मिलता तो मानव,
क्षुधा से पीड़ित मर जाता।
एक ही दिन मिलता तो क्या नर,
सृजन नया कोई कर पाता।
एक ही दिन में ज्ञान की सरिता,
अविरल हृदय न बह पाती।
एक ही दिन में सृष्टि सनातन,
अमित छाप न जड़ पाती।
एक दिन में हम कूप खोद,
जब प्यास बुझा नहीं सकते हैं,
एक ही दिन में आजादी को,
माप नहीं हम सकते हैं।
इस एक दिन के लिए मात ने,
कितने सुतों को खोया है।
कितनी सतियों ने अपना सत,
देश की भूमि में बोया है।
धर्म संस्कृति खोए न अपनी,
याद इसे हम करते हैं।
इस एक दिन के लिए
सैकड़ों वर्षों तक हम मरते हैं।
अमृत सा पावन हमको यह,
आजादी का त्योहार मिला।
एक दिवस में बाँधें न इसको,
सुन्दर हमें उपहार मिला।।
रचयिता
सीमा मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय काज़ीखेडा,
विकास खण्ड-खजुहा,
जनपद-फतेहपुर।
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