रेशम का धागा

सच कहूँ मगन हो जाती हूँ

जब राखी का त्योहार आता है

हर घर हो एक प्यारी बेटी

जिससे भाई का मस्तक सज जाता है।।


उल्लास भरा यह पावन पर्व

अटूट प्रेम का द्योतक है

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

अनूठे रिश्ते का सूचक है।।


बाँधे कलाई पर राखी बहना

माथे कुमकुम अक्षत लगाए

करे कामना दीर्घायु की

रक्षा कर मुस्कान बिखेरे।।


लेती वचन निभाना भैया

रक्षा सदा तुम मेरी करना

चाहें हो तकरार कभी भी

यह पावन दिन भूल न जाना।।


लेकर उपहार अनोखे बहनें

लेती बार- बार बलइयां

सदा सलामत रखना भगवन

रहो कुशल तुम मेरे भइया।।


जब तक रहे सूर्य अम्बर में

दिन बीते सुख चैन भरे

हर हाल करूँगा रक्षा तेरी

हर लूँगा सब पीर तेरे।।


रेशम का धागा भेज निमंत्रण 

कर्णवती ने हुमायूँ को भाई माना था।

रक्षा कर मेवाड़ राज्य की

हुमायूँ ने अपना कर्तव्य निभाया था।।


बंधन नहीं बँधा रक्त से 

कभी गैर भाई बन जाते हैं

देख रक्त उँगली कान्हा की

द्रोपदी ने साड़ी फाड़ दिया।।


 बाँध चीर कान्हा के पांचाली     

बहते लहू को रोक लिया 

हुआ सभा में चीरहरण जब

लाज बचाने पहुँच गया।।


 चाँद सितारों से भी बढ़कर 

भावनाओं, स्मृतियों से अटूट भरा

दुआ की थाली सजा नैनों में

अद्वितीय धागे का बंधन प्यारा।।


होते खुशनसीब वो सब भाई 

जिनके प्यारी बहना से घर द्वारा भरा

सुख-दुख साझा करते आपस में

देखो राखी से सारा बाजार सजा।।


रचयिता

ज्योति अग्निहोत्री,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय शेखनापुर घाट,
विकास खण्ड-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।



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