हॉकी के जादूगर
आओ बच्चों आज आपको,
हॉकी के जादूगर से मिलाएँ।
देख जिनके शौर्य को,
अच्छे-अच्छे भी घबराएँ।।
गोल करे थे इतने,
जैसे हों रन बटोरे।
एकाग्रता खेल में ऐसी,
सपने ना रह पाएँ कोरे।।
29 अगस्त 1905 को,
देश ने यह रतन पाया।
सतत साधना, लगन, संघर्ष,
संकल्प एक दिन रंग लाया।।
बने सिपाही जब सेना में,
हॉकी की रुचि नहीं मन में।
खेलते-खेलते बने खिलाड़ी,
प्रोन्नत हुए फिर पग-पग में।।
ओलंपिक में पदक दिलाए,
भारत को धन्य-धन्य किया।
डॉन ब्रैडमैन और हिटलर को भी,
प्रतिभा का कायल किया।।
स्टिक से चिपके गेंद ऐसी,
जैसे हो रहा हो जादू।
हॉकी स्टिक भी तोड़ के देखी,
किस्से इतने कैसे लिखूँ।।
वाह-वाह किए बिना,
विपक्षी भी रह ना पाते।
मेजर ध्यानचन्द हॉकी सम्राट,
दद्दा भी थे कहलाते।।
पद्मभूषण दद्दा अपने,
हर हॉकी प्रेमी के दिल में।
नाम इतना महान बना,
ध्यानचन्द की उपाधि लें।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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