गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर
देशभक्ति से ओत-प्रोत,
माँ भारती को समर्पित।
गढ़ा जिन्होंने राष्ट्रगान,
काव्यांजलि उन्हें है अर्पित।।
कविवर गुरुवर मानवतावादी,
करते तुमको सभी प्रणाम।
देवेन्द्रनाथ टैगोर पिता,
शारदा देवी था माँ का नाम।।
लिखे गीतों पर झूम रहे,
बांग्लादेश और हिन्दुस्तान।
उपकृत देखो दो-दो देश,
कृपा रूप में राष्ट्रगान।।
ओमार सोनार बांग्ला बना,
बांग्लादेश की पहचान।
शान है अपने भारत की,
जन-गण-मन का मंगल गान।।
गांधी जी का था सम्मान,
दी महात्मा की उपाधि।
जलियांवाला कांड के विरोध में,
'सर' की उपाधि लौटा दी।
वैज्ञानिक सोच को दिया बढ़ावा,
अन्धराष्ट्रवाद का किया विरोध।
मानवता ही सर्वोपरि है,
इसमें ना हो कोई अवरोध।।
आठ बरस की उम्र में ही,
पहली कविता लिख डाली।
लिखीं प्रसिद्ध रचनाएँ महुआ,
शिशु भोलानाथ चोखरेबाली।।
गीतांजलि का किया सृजन,
नई चेतना जाग गयी।
अंग्रेजी अनुवाद की प्रतिभा,
पूरब पश्चिम को मिला गयी।।
प्रकृति प्रेम गया ना मन से,
सोच को मूर्त रूप दिया।
प्रकृति के सानिध्य में गुरुकुल,
शान्ति निकेतन स्थापित किया।।
नोबेल पुरस्कार विजेता,
एकमात्र भारतीय साहित्यकार।
किया अचम्भित गोरों को,
रच राष्ट्रगान रूपी प्रहार।।
चित्रकार की छवि दिखायी,
युग संशय निराशा के स्वर छलके।
7 अगस्त 1941 को वह,
दिव्य आलोक परलोक गए।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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