रक्षाबंधन
भाई-बहन के दिल से पूछो ये डोरी है अनमोल
अटूट है रिश्ता ये बड़ा इसे पैसे से न तौल
बहन का दुलार छिपा है राखी के हर मोती में
भाई का स्नेह देखना उसकी आँखों की ज्योति में
लड़ते-झगड़ते भी न पड़े कभी इसमें कोई झोल
अटूट है ये.................................
बरसों की ये रीत है, मन की मन से प्रीत है
एक-दूजे से ही जुड़ी दोनों की हार जीत है
दूर जब होती बहना याद आये हँसी ठिठोल
अटूट है ये................................
बड़ी बहन तो माँ का धारण करती स्वरूप
छाया बन जाती भाई की हो जब भी कड़ी धूप
धागे-धागे की महत्ता का समझे है भाई मोल
अटूट है ये................................
हाथ पर सजे है, राखी माथे पर टीका चंदन
प्रेम और विश्वास लिए आता है रक्षाबंधन
छोटा होकर भी है निभाता भाई पिता का रोल
इस राखी करती 'पारुल' हर भाई से आगाज़
अपनी बहन की तरह रखना हर लड़की की लाज़
सम्मान करना हर नारी का इन आँखों को खोल
अटूट है ये........……………………
रचयिता
पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteस्नेहमयी भाव