हलषष्ठी व्रत
आया हलषष्ठी का पावन पर्व सुहाना,
आओ गाएँ हम सब मिलकर गाना।
मिलकर सुहागन पूजा बेदी बनाती,
हलधर की मूरत चौका बीच बैठाती।।
प्रथम पूजन सब गणपति के करते,
महादेव का संग में अभिनंदन करते।
आँगन बीच चौक रंगोली सजाते,
फूल माला पलाश के तोरण लगाते।
चौका आसन देकर कलश बिढा़ते,
श्रद्धा से तब सब जन ध्यान लगाते।
सुख, संतति, उत्तम वर कामना करते,
पृथ्वी पूजन कुश जल से तब करते।।
ध्यान, पूजन, अर्चन करें हलषष्ठी माई,
भादो माह की षष्ठी तिथि माँ को भाई।
महुआ, लाई, पुष्प को पूजा में चढ़ाते,
छः अनाज का तब, व्रती भोग लगाते।।
छः भाजी, पसहर चावल भोग लगाते,
भैंस के दूध, घृत ही सब घर में लाते।
पात ढाक के लगा, छः कहानी सुनते,
षष्ठी माई की महिमा, सब जन गुनते।।
जोया-बोता व्रती कोई अन्य न खाते,
संतान दीर्घायु को निर्जला व्रत रखाते।
जय जय जय हो तेरी, हलषष्ठी माई,
आशीष देना माँ, रहना सदा सहाई।।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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