तम्बाकू निषेध दिवस
हे मानव तू किस ओर चला?
नशे का दामन क्यों थाम लिया?
क्यों सोच रहा नशे में ही है मजा
मजा नहीं ये जीवन भर की है सजा।
मज़े मजे में नशा हुआ है,
नशीलापन अब मजा बना है,
बीड़ी, सिगरेट धुआँ का आलम,
क्या तुमने जीत ली सारी प्रॉब्लम?
क्या प्रॉब्लम का यही हल तुमने पाया?
जवानी खड़ी देखती रही तुमने क्यों बुढापा अपनाया?
हर रोज शर्म से आँखें झुकतीं, मन हैं दुखते,
जब बच्चों के कदम गुटखा, तम्बाकू को हैं उठते।
स्कूल, गली, सड़कों पर दिखते बच्चे,
मन के सच्चे पर लक्षण न अच्छे,
बाली उमर में ख्वाब गुटखे के आते,
भाँति- भाँति के रोगों को इससे हैं गले लगाते।
ढेरों जहर भरा गुटखे में,
टी0वी0 अस्थमा को अपनाते,
और कैंसर की सेज में बैठे,
मरघट तक वो सफर में जाते।
व्याधि हो गई कैंसर की,
लाखों रुपये रोज बहाते,
कितनी भी हो जाए चिकित्सा
प्राण नहीं फिर भी बच पाते।
जागरूकता रोज हो रही,
1987 से इसे मनाते,
तम्बाकू और बीड़ी भैया,
सबके लिए हैं जहर बताते।
पता नहीं क्यों अब भी बच्चे,
गुटखा खाना नहीं अघाते?
सुनो तुम देश के नौजवानों,
बात सुनो तुम मेरी मानो,
देश का भविष्य तुम ही हो ये तुम जानो,
गुटखा छोड़ो स्वास्थ्य पहचानो।।
रचयिता
मंजू बहुगुणा,
सहायक अध्यापक,
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय आमपाटा,
विकास खण्ड-नरेंद्रनगर,
जनपद-टिहरी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
हृदय स्पर्शी रचना🎉👍🎉
ReplyDeleteThanks🙏
Deleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDelete🙏💐
Delete👌👌👌👍👍👍🙏🙏
ReplyDelete🙏💐
DeleteBahut sundar rachna
ReplyDelete💐🙏
Deleteबहुतख़ूब👌
ReplyDeleteThanks mam💞
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