सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत (प्रकृति के चितेरे कवि)


छायावाद के चार स्तंभों में एक,

सुमित्रानंदन पंत नाम था उनका नेक,

इनके युग को माना कवियों का युग,

20 मई उन्नीस सौ को कौसानी में जन्म हुआ हर्षातिरेक।


आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, गौर वर्ण था,

सुंदर सौम्य मुखाकृति, सुगठित शारीरिक सौष्ठव था,

माँ की मृत्यु के बाद दादी ने पाला इनको,

बचपन का इनका नाम गोसाई दत्त था।


1921 में महात्मा गांधी से हुए प्रभावित,

इलाहाबाद में हुई उनकी काव्य चेतना विकसित,

1938 में मासिक पत्रिका "रूपाभ" का संपादन,

अरविंद आश्रम की यात्रा से आध्यात्म विकसित।


काव्य संग्रह की कविताओं से "चिदंबरा" प्रकाशित,

1968 में "भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार" से सम्मानित,

"कला और बूढ़ा चाँद" ने साहित्य अकादमी पुरस्कार पाया,

पद्म भूषण की उपाधि से भी हुए सुशोभित।


7 वर्ष की उम्र से कवित्व के क्षेत्र में आए,

"वाणी" और "पल्लव" में सौंदर्य पवित्रता के दर्शन कराए,

"युगांत" से "ग्राम्या" तक काव्ययात्रा की उद्घोषणा,

प्रकृति के चितेरे सौंदर्य के रमणीक चित्र दिखाए।


"सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका" घर बना संग्रहालय,

प्रशस्ति- पत्र, कविता संग्रह की पांडुलिपियाँ बनीं साक्ष्य,

28 दिसंबर 1977 हुए चिरनिंद्रा में लीन,

अंत:स्थल में नारी, प्रकृति के सौंदर्यपरक भावना रही ग्राह्य।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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