मेरी माँ
तेरी हथेलियाँ थीं सदा नीचे,
मेरे पाँव जमीं पे पड़े ही नहीं।
फूलों की सुखद अनुभूति थी,
कभी पाथर शूल गड़े ही नहीं।।
तेरे आँचल की छाँव में मुझको,
दुनिया की तपन छू भी ना सकी।
तेरा आशीष है मेरे सिर पर,
किस्मत भी मेरे आगे आ झुकी।।
बेटा-बेटी के अन्तर का,
झूठे से भी भाव कभी झरा नहीं।
जब तक तुझ संग न भोज किया,
कभी पेट मेरा भी भरा नहीं।।
तेरी ममता की बारिश ने सदा,
तपते मन को आनन्द दिया।
शीतल शीतल हो गया मन,
आँखों को जब भी बंद किया।।
हो क्षमा त्याग की मूरत तुम,
हर भूल मेरी तुम भूल गयीं।
फिर फिर मुझको कर देना क्षमा,
हो जाए अगर कोई चूक कभी।।
जो कुछ हूँ तेरे ही कारण हूँ,
तुम मेरी भाग्य विधाता हो।
ईश्वर ने मुझको धन्य किया,
इस जन्म तुम मेरी माता हो।।
मेरी पालक, पोषक, रक्षक हो,
उतरेगा कभी ये कर्ज नहीं।
तेरा दूध लहू बन दौड़ रहा,
भूलेगा कभी यह फर्ज नहीं।।
यदि दे मुझको फिर जन्म प्रभु,
तेरा आँचल, तेरी ही गोद मिले।
मिले यही मुस्कुराता चेहरा,
जिसे देख के मन को तोष मिले।।
रचयिता
दीप्ति सक्सेना,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कटसारी,
विकास खण्ड-आलमपुर जाफराबाद,
जनपद-बरेली।
बहुत बहुत शुक्रिया मिशन शिक्षण संवाद
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