वर्षा रानी

 बिन तेरे मन आँगन संग,

 तन-मन धरा का सूना है।

 ऋतु चौमासे लगते फीके,

 वर्षा रानी....................।


 धरती का वक्षस्थल सूखा,

 वन जंगल सब सूखे हैं।

 तेरा आना...मन हर्षाता,

 बिन तेरे सब रूखे हैं।


 चुपके से आ पायल बाँधे,

 छन-छन की झंकार लिए।

 मन-भावन फुहार बरसा दे,

 सारी खुशियाँ बेशुमार लिए।


 तेरा किसान बेटा व्यथित है,

 खेत खलिहान सभी सूखे हैं।

 किसे सुनाएँ व्यथा अपनी...?

 बिन वर्षा बच्चे भूखे हैं।


 तुम समय-समय पर आया करो,

 बे मौसम में आकर के।

 सबको यूँ ना डराया करो,

 ना इस तरह सताया करो।


 बे-मौसम जब आती है,

 रौद्र रूप दिखलाती है।

 जन-मानस की रूह काँपती,

 रातों को नींद ना आती है।


 तेरा गुस्सा बादल बनकर,

 कई कहर बरपाता है।

 नहीं पहर का ठौर-ठिकाना,

 गाँव-शहर बह जाता है।


 माना कि मदहोश मनुष्य ने,

 छेड़ प्रकृति से सदा की है।

 दया के भाव तुम रखना मन में,

 तू तो दया की देवी है।


 नतमस्तक हो मानव को,

 सहमति प्रकृति से बनानी है।

 अभी देर अधिक नहीं हुई है,

 पानी है तो जिंदगानी है।

                      वर्षा रानी............।


रचयिता

बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।

Comments

Post a Comment

Total Pageviews