बुद्ध पूर्णिमा
वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले जब कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने नैहर देवदह जा रही थीं तो रास्ते में लुम्बिनी वन में हुआ। यह स्थान नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान है, वहाँ आता है। जहाँ एक लुम्बिनी नाम का वन था।
गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था। बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म के अनुयायियों के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोगों के लिए भी विशेष महत्व रखती है।
बुद्ध पूर्णिमा महत्व: गौतम बुद्ध के जन्म और मृत्यु के समय को लेकर मतभेद हैं। लेकिन कई इतिहासकारों ने इनका जीवनकाल 563-483 ई0पू0 के मध्य माना है। सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। पूरी दुनिया में महात्मा बुद्ध को सत्य की खोज के लिये जाना जाता है। गौतम बुद्ध राजसी ठाठ छोड़कर वर्षों वन में भटकते रहे और उन्होंने कठोर तपस्या कर बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे सत्य का ज्ञान प्राप्त कर लिया। इसके बाद महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान से पूरी दुनिया में एक नई रोशनी पैदा की।
बुद्ध की शिक्षाएँ
बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के 49 दिनों के बाद उनसे पढ़ाने के लिए अनुरोध किया गया था। इस अनुरोध के परिणामस्वरूप, योग से उठने के बाद बुद्ध ने धर्म के पहले चक्र को पढ़ाया था। इन शिक्षणों में चार आर्य सत्य और अन्य प्रवचन सूत्र शामिल थे जो हीनयान और महायान के प्रमुख श्रोत थे।
हीनयान शिक्षाओं में बुद्ध बताते हैं कि कष्टों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा और महायान में वह बताते हैं कि दूसरों की खातिर कैसे पूर्ण ज्ञान या बुद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं। दोनों परंपराएँ एशिया में सर्वप्रथम भारत और तत्पश्चात तिब्बत सहित आसपास के अन्य देशों में धीरे-धीरे विस्तारित होने लगी। अब ये पश्चिम में पनपने की शुरुआत कर रही हैं।
बौद्ध धर्म के मूल शिक्षाओं के रूप में चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं:
1-दुनिया दुःख और कष्टों से भरी है।
सभी पीड़ाओं का एक कारण (समुदाय) हैं जो इच्छा (तृष्णा) है।
2-दर्द और दुःख का अंत इच्छाओं के छुटकारा मिलने से किया जा सकता है (निरोध)।
3 -तृष्णा को अष्टांगिक मार्ग के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
अष्टांग मार्ग नीचे निम्नलिखित हैं:
1) सम्यक विचार
2) सम्यक विश्वास
3) सम्यक वाक
4) सम्यक कर्म
5) सम्यक जीविका
6) सम्यक प्रयास
7) सम्यक स्मृति
8) सम्यक समाधि
बौद्ध धर्म में निर्वाण
बौद्ध धर्म में बताया गया है कि निर्वाण के द्वारा मृत्यु और जन्म के चक्र से छुटकारा मिल सकता है। बौद्ध धर्म के अनुसार, इसे आप जीवन भर हासिल कर सकते हैं और मृत्यु के बाद नहीं।
महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर कुशिनारा पहुँचे। जहाँ पर 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गई। इसे बुद्ध परम्परा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है। मृत्यु से पहले उन्होंने अपना अंतिम उपदेश कुशिनारा के परिव्राजक सुभच्छ को दिया महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया।
1-एक जंगली जानवर की अपेक्षा कपटी और दुष्ट मित्र से ज्यादा डरना चाहिए।
2-चाहे आप जितने ही पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, ये शब्द आपका भला तब तक नहीं करेंगे जब तक आप इनको उपयोग में नहीं लाते हैं।
3-मैं कभी नहीं देखता हूँ कि क्या किया जा चुका है। हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है।
4. हम जो सोचते हैं, वह बन जाते हैं।
5. तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे।
लेखक
मंजू बहुगुणा,
सहायक अध्यापक,
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय आमपाटा,
विकास खण्ड-नरेंद्रनगर,
जनपद-टिहरी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
सुन्दर लेख
ReplyDelete👌👌🏼nice mam
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteGood collection of Great personality..... informatic
ReplyDeleteVery nice ma,am👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
Deleteबहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteबहुतख़ूब👌
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