माँ

माँ को समझना है तो,

माँ बनना पड़ेगा।

समय के झंझावतों से,

आगे बढ़ लड़ना पड़ेगा। 


गीले में खुद सोकर, 

सूखे में हमें सुलाती।

यही खूबी है उनकी,

वह माँ कहलाती। 


दिन दुर्दिन, 

जीवन में जब आते।

हौंसला देती हमें,

अच्छे दिन फिर बहुर आते।


डाँट में जिसके प्यार छुपा, 

प्यार में एक सीख छिपी।

सीख में कल्याण छिपा,

कल्याण में ही कर्तव्य छिपा।।

 

खुद भूखी रहकर,

पेट सदा भरती हमारा।

हमारे नखरों में भी,

साथ दिया है हमारा।


उँगली पकड़ चलना सिखाया,

परिस्थितियों से लड़ना सिखाया।

कलम पकड़ लिखना सिखाया,

भीड़ से अलग चलना सिखाया।


मानो न मानो, 

मैं माँ की परछाईं हूँ।

अपने कर्तव्य निभाने,

धन्य धरा पर आई हूँ।।


माँ को समझना है तो,

माँ बनना पड़ेगा।

समय के झंझावतों से,

आगे बढ़ लड़ना पड़ेगा। 


रचयिता
अंजू गुप्ता,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय खम्हौरा प्रथम,
विकास क्षेत्र-महुआ, 
जनपद-बाँदा।



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