सुन्दरलाल बहुगुणा जी

छोड़ गए हो आज हमें तुम,

है इसका अफसोस बड़ा।

अपने दृढ़ संकल्प से तुमने,

जग में कमाया नाम बड़ा।


सुन्दर उच्च विचारों वाले,

सुन्दर लाल बहुगुणा जी।

हैं नाम के जैसे काम तेरे,

मान गए हम तुम्हें गुरु जी।


प्रकृति प्रेम कारण तुम तो,

वृक्ष मित्र कहलाए हो।

चलाकर चिपको आंदोलन,

हरियाली धरा की बचाए हो।


माँ बहनों ने साथ निभाया,

तुम्हे अपना आदर्श बनाया।

उन्होंने चिपक कर पेड़ों से,

पेड़ों को कटने से बचाया।


'मिट्टी पानी और बयार',

हैं ये सब जीवन के आधार।

इनको बचाओ मिलकर के,

है इनके बिना जीना दुश्वार।


ना छेड़ो तुम कुदरत को,

तुमको कुदरत ना छोड़ेगी।

पहुँचाया जो कष्ट तनिक भी,

ये कुदरत तुझको भी छोड़ेगी।


अनशन करके चौरासी दिन,

तुमने विरोध जताया था।

रोको ना वेग पानी का तुम,

भुगतोगे हमें ये चेताया था।


देवभूमि के देव तुम्हीं हो,

प्रकृति के सच्चे पुजारी हो।

हम सब के ही गुरु आप हो,

प्रकृति के तारणहारी हो।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।




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