विश्व परिवार दिवस

जीवन की पहली पाठशाला परिवार,

माँ के आँचल की छाया परिवार,

पापा के सपनों का संसार परिवार,

भाई -बहन का प्यारा झगड़ा परिवार।


संस्कारों की शिक्षा देता परिवार,

बच्चों की किलकारी से गूँजता परिवार,

तोतली भाषा का गवाह परिवार,

माँ की लोरी से महकता परिवार।


पग-पग चलना सिखाता परिवार,

रसोई की खुशबू से सराबोर परिवार,

दादी-बाबा की कहानियाँ परिवार,

बेफिक्री का जीवन देता परिवार।


दर्द में मरहम जैसा परिवार,

मुश्किलों में चट्टान सा खड़ा परिवार,

एकल और संयुक्त होते परिवार,

आज के परिवेश में बदलते परिवार।


भूल-भुलैया में खो गए परिवार,

अहम की बलि चढ़ गए परिवार,

संयुक्त से एकल हो गए परिवार,

विडंबना, क्या से क्या हो गए परिवार।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।


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