कितना अच्छा लगता है

गुड हैबिट्स

कितना अच्छा लगता है।

कागज़ के टुकड़े, ज़मीन पर पड़े हुए।
कितना गन्दा लगता है, कितना गन्दा लगता है।।
उनको उठाके डस्टबिन में डालो।
कितना अच्छा लगता है, कितना अच्छा लगता है।।
शोर मचाते बच्चे, झगड़ा करते बच्चे।
कितना गन्दा लगता है, कितना गन्दा लगता है।।
मैम से सॉरी बोलके क्लास में चुप बैठो।
कितना अच्छा लगता है, कितना अच्छा लगता है।।
बिखरी हुई चप्पल, बिखरे हुए जूते।
कितना गन्दा लगता है, कितना गन्दा लगता है।।
उनको उठाके लाइन से रखो।
कितना अच्छा लगता है, कितना अच्छा लगता है।।
गन्दी ड्रेस पहन के, बिना नहाए आओ।
कितना गन्दा लगता है कितना गन्दा लगता है।
रोज नहाना, राजा बाबू बनके आना।
कितना अच्छा लगता है कितना अच्छा लगता है।।
टूटी फूटी क्यारी, मुरझाए हुए फूल।
कितना गन्दा लगता है कितना गन्दा लगता है।।
सुन्दर सुन्दर क्यारी, रंग बिरंगे फूल।
कितना अच्छा लगता है कितना अच्छा लगता है।।
खाते-खाते शोर ख़ूब मचाना।
कितना गन्दा लगता है, कितना गन्दा लगता है।।
मुँह बन्द करके, चबा-चबा के खाओ।
कितना अच्छा लगता है, कितना अच्छा लगता है।।

रचयिता
श्रीमती आसिया फ़ारूक़ी,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय अस्ती,
नगर क्षेत्र,
जनपद-फ़तेहपुर।

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