पापा मैं भी स्कूल चलूँगी

कलम से रिश्ता जोड़कर अपना
शब्दों से पहचान करूँगी
भईया से कम न समझना मुझको
कंधे से कंधा मिलाकर चलूँगी

पापा मैं भी स्कूल चलूँगी।

मन में ज्ञान का दीप जलाकर
सबका मैं सम्मान करूँगी
शिक्षा की मशाल को लेकर
आपका रौशन नाम करूँगी

पापा मैं भी स्कूल चलूँगी।

तोड़कर सारी जंजीरों को
अपने मन का हाल लिखूँगी
बेटी बोझ समझने वालों की
मानसिकता को मैं बदलूँगी

पापा मैं भी स्कूल चलूँगी।

अहिल्या, लक्ष्मीबाई से लेकर
कल्पना, पी.वी.सिंधु बनूँगी
देश विदेश पर मैं भी अपने
भारतीय ध्वज को लहराऊँगी

पापा मैं भी स्कूल चलूँगी।

माना ये सब आसान नहीं
पर कोशिश कर दिखलाऊँगी
समाज में फैले अंधकार को
शिक्षा से दूर भगाऊँगी।

पापा मैं भी स्कूल चलूँगी।
       
रचयिता
वंदना प्रसाद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कैली,
विकास खण्ड-चहनियां,
जनपद-चंदौली(उत्तर प्रदेश )

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