पूँछ हिलाने वाला भेड़िया
कक्षा 2 के पाठ-21 "पूँछ हिलाने वाला भेड़िया" का काव्य रूपांतरण
सुनो सुनायें एक कहानी,
नटखट मेमने की ज़ुबानी...
एक दिन मैं जा रहा था,
मटकता, चहकता, इठलाता...
मिला तभी मुझे एक भेड़िया,
गड्ढे में जो गिरा हुआ था...
मैंने पूछा रूककर उससे,
कौन हो, गड्ढे में गिर गए कैसे...
उसने रोकर व्यथा सुनाई,
बोला मैं कुत्ता हूँ भाई...
मुर्गा बचाते गिरा गड्ढे में,
कोशिश बहुत की थी मैंने...
गड्ढे से निकलने की,
कोशिशें सारी बेकार गयीं...
चाल मैं उसकी समझ गया था,
इतना भी नादान नहीं था...
मेरी माँ ने जो पाठ सिखाया,
काम वही मेरे अब आया...
मैं बोला तुम भेड़िये दिखते हो,
कैसे खुद को कुत्ता कहते हो...
भेड़िया कम चालाक नहीं था,
धूर्त भेड़ियों का सरदार था...
उसने भी कुछ जुगत भिड़ाई,
कुत्ते जैसे पूँछ हिलायी...
बोला देखो कुत्ता ही हूँ,
कोशिश करो बाहर आ जाऊँ...
मैं फिर से बोला उससे,
मुँह तुम्हारा भेड़िया जैसे...
सोच समझकर काम करूँगा,
ऐसे न विश्वास करूँगा...
भेड़िये को फिर गुस्सा आया,
उसने बड़ा सा मुँह फैलाया..
लगा डाँटने फिर वो मुझको,
ऐसा क्या जो इतना सोचो...
उसके नुकीले दाँत दिख गए,
चालाकी उसकी दिखा गए...
मैं बोला भेड़िया होकर भी,
कुत्ते सी पूँछ हिलाते हो...
पड़े रहो फिर तुम गड्ढे में,
ऐसे ही जुगत लगाते रहो...
मेरी माँ ने सीख सिखायी,
जो अब मेरे काम में आयी...
इसीलिए कहता हूँ बच्चों,
बात सदा बड़ों की मानो...
फिर कोई तुम्हें न ठग पायेगा,
सदा ही वो मुँह की खाएगा.....
रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसेनी(बालक) अंग्रेजी माध्यम,
विकास खण्ड-बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।
सुनो सुनायें एक कहानी,
नटखट मेमने की ज़ुबानी...
एक दिन मैं जा रहा था,
मटकता, चहकता, इठलाता...
मिला तभी मुझे एक भेड़िया,
गड्ढे में जो गिरा हुआ था...
मैंने पूछा रूककर उससे,
कौन हो, गड्ढे में गिर गए कैसे...
उसने रोकर व्यथा सुनाई,
बोला मैं कुत्ता हूँ भाई...
मुर्गा बचाते गिरा गड्ढे में,
कोशिश बहुत की थी मैंने...
गड्ढे से निकलने की,
कोशिशें सारी बेकार गयीं...
चाल मैं उसकी समझ गया था,
इतना भी नादान नहीं था...
मेरी माँ ने जो पाठ सिखाया,
काम वही मेरे अब आया...
मैं बोला तुम भेड़िये दिखते हो,
कैसे खुद को कुत्ता कहते हो...
भेड़िया कम चालाक नहीं था,
धूर्त भेड़ियों का सरदार था...
उसने भी कुछ जुगत भिड़ाई,
कुत्ते जैसे पूँछ हिलायी...
बोला देखो कुत्ता ही हूँ,
कोशिश करो बाहर आ जाऊँ...
मैं फिर से बोला उससे,
मुँह तुम्हारा भेड़िया जैसे...
सोच समझकर काम करूँगा,
ऐसे न विश्वास करूँगा...
भेड़िये को फिर गुस्सा आया,
उसने बड़ा सा मुँह फैलाया..
लगा डाँटने फिर वो मुझको,
ऐसा क्या जो इतना सोचो...
उसके नुकीले दाँत दिख गए,
चालाकी उसकी दिखा गए...
मैं बोला भेड़िया होकर भी,
कुत्ते सी पूँछ हिलाते हो...
पड़े रहो फिर तुम गड्ढे में,
ऐसे ही जुगत लगाते रहो...
मेरी माँ ने सीख सिखायी,
जो अब मेरे काम में आयी...
इसीलिए कहता हूँ बच्चों,
बात सदा बड़ों की मानो...
फिर कोई तुम्हें न ठग पायेगा,
सदा ही वो मुँह की खाएगा.....
रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसेनी(बालक) अंग्रेजी माध्यम,
विकास खण्ड-बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।
Sachan ji very nice,keep it up
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