सैनिक का जाना

कुछ दिन बाद, हमारे लिए
सिर्फ खबर बन जाएगी
पर 44 परिवारों की
ज़िन्दगी सदा कसमसाएगी

सैनिक का जाना,
वो भी यूँ, इस तरह!!!
जन्नत की ख्वाहिश पाले बैठे ऐ दुश्मन!
जहन्नुम में भी न मिलेगी तुझे जगह

खून खौलता यही पुकारे
करो नेस्तनाबूद
दुश्मन पानी माँग सके न
कर दो खत्म वजूद

अबकी नहीं 'सर्जरी' करना
लाइलाज बीमारी है
सिर्फ मौत है इसकी नियति
रग-रग में मक्कारी है

हे भगवान! शांति मिले,
जिस-जिसने पायी वीरगति
और उनके परिजन पायें
दुख सहने की शक्ति बड़ी

रचनाकार
प्रशान्त अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
ज़िला-बरेली (उ.प्र.)

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