मौन हो तुम

सरहद पर अर्थियों के मेले सजे हैं
अभी भी मौन हो तुम?

गगन भी अश्रूपूरित है
धरा भी सिसकियाँ लेती
धधकती ज्वाल है चहुँओर
हवा  चीत्कार कर बहती
दिलो मे हिचकियों के रेलें लगे हैं
परन्तु मौन हो तुम?

कहाँ है सिंह सी गर्जन
कहाँ है अब  रिपु-मर्दन
तेरी लम्बी बड़ी बातें
हमारी झुकी हुई गर्दन
सियासी वक्तव्यों के पन्ने सजे हैं
कर्मों से मौन क्यों तुम?

जमीं तुम पर निगाहें हैं
तुम ही आस हम सबकी
करो कुछ प्रतिकार ऐसा तुम
हो शीतल आत्मा उनकी
चिता पर अर्थियाँ जिनकी सजी हैं
रहो न मौन अब तुम!!!!

रचयिता
शीला सिंह,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय विशेश्वरगंज, 
नगर क्षेत्र-गाजीपुर,
जनपद-गाजीपुर।

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