महाप्राण सूर्यकांत
महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की जयंती पर विशेष
आज माघ की पंचमी जिसे 'श्री पंचमी' अथवा 'बसंत पंचमी'भी कहा जाता है। यह दिन विद्या-बुद्धि की दात्री :माँ वीणावादिनि के प्राकट्य का भी दिन है। अतः इसे 'सरस्वती पंचमी' भी कहा जाता है।
यह न केवल सरस्वती का आविर्भाव दिवस है वरन् देश के प्रखर भक्त और योद्धा दोनों के संगम महाप्राण निराला का जन्मदिवस भी है। निराला सतत् संघर्षों में तपे किन्तु उनकी जीवन्तता में कोई अन्तर नहीं आया।
हम विचार करते हैं कि इस जीवन्तता के अतिरिक्त और कौन सी बात है जिसने इस कवि के नाम के आगे 'महाप्राण' शब्द चिपका दिया।
यहाँ मैं निराला जी के द्वारा ही प्रश्न का उत्तर खोज रही हूँ...
सामान्य प्राण वह तत्व है जो किसी भी प्राणी में जीवन्तता बनाये रखता है किन्तु महाप्राण प्राण की की वह अवस्था है जहाँ
प्राण नियंत्रित होता है... किसी विशेष प्रतीक्षा के द्वारा... जहाँ प्राण प्रेरित होता है-किसी साधना के लिए।
'राम की शक्ति पूजा' में रावण का साथ दें रहीं दुर्गा के लिए राम को उद्बोधित करते हुए जाम्बंत कहते हैं---आराधन का तुम दृढ़ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।
इसका अर्थ है--राम संयत प्राणों के धनी होकर यदि संघर्ष छेड़ें तो वह सामान्य प्राण धारक रावण पर विजयी हो सकते हैं।
यानि एक ओर राम महाप्राणत्व से परिपूर्ण हैं और दूसरी ओर रावण की प्राण क्षमता अल्प है। जिसमें जीवट है.... संघर्षों से टकराने की क्षमता है..... वही 'महाप्राण' है।
इसलिए ये 'महाप्राण 'निराला पर बहुत सार्थक लग रहा है।
आज उनकी पावन जयंती पर सरस्वती के वरद पुत्र 'महाप्राण निराला' को कोटिशः नमन।
रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
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