नाज है वीर जवानों पर
नाज है वीर जवानों पर
जो मान बढ़ाकर आये हैं,
पुलवामा के कातिलों का काम तमाम कर आये हैं।।
पुलवामा के वीर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि दे आये,
दुश्मन के घर में घुस कर मारे,
शान बढ़ाकर आये हैं
नाज है वीर जवानों पर
जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
उठ खड़ा हुआ देश समूचा,
करने अभिनंदन वीर जवानों का,
धन्य है माँ भारती के लाल
भय पर शानदार विजय दिलाकर आये हैं,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
शान है हम सब भाई-भाई,
छोड़ के तुष्टिकरण का रंग सबको गले लगाना होगा,
बात जब भी देश हित की आये,
सारे भरम मिटाना होगा
एक सुर में उन शहीदों का गौरव गान गाना होगा,
नाज है वीर जवानों पर
जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
अमन का पाठ पढ़ाने वाला शांति दूत है अपना भारत,
जब अमन पर आँच है आयी,
शहादत से न भय खाकर झट बदला ले आये है,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
धधक रही थी ज्वाला उनमें,
अपने रणबाँकुरों की शहादत पर,
जो हम सबको महफूज रखने की खातिर
पल-प्रतिपल मौत के साये में रहते,
नाज है उन वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।
घर-परिवार से दूर निर्जन में कर्त्तव्य निर्वहन करते,
संकल्प लेकर उनकी शहादत क्षण भर भी विस्मृत न होने दिए,
दुश्मन के घर में घुसकर मारे शान बढ़ाकर आये हैं,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
हम सब भी अब चन्द फूल दो चार मालायें,
दीप जलाकर इतिश्री न कर लेवें,
उनके परिवारों को गले लगाकर कमज़ोर कभी न उन्हें होने देवें,
जिसे देखकर उनकी आत्मा हो कहि जो धरा स्वर्ग में,
देश पर अपने इठलाये,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं
दुश्मन के घर में घुस के मारे,
शान बढ़ाकर आये।।
जो मान बढ़ाकर आये हैं,
पुलवामा के कातिलों का काम तमाम कर आये हैं।।
पुलवामा के वीर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि दे आये,
दुश्मन के घर में घुस कर मारे,
शान बढ़ाकर आये हैं
नाज है वीर जवानों पर
जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
उठ खड़ा हुआ देश समूचा,
करने अभिनंदन वीर जवानों का,
धन्य है माँ भारती के लाल
भय पर शानदार विजय दिलाकर आये हैं,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
शान है हम सब भाई-भाई,
छोड़ के तुष्टिकरण का रंग सबको गले लगाना होगा,
बात जब भी देश हित की आये,
सारे भरम मिटाना होगा
एक सुर में उन शहीदों का गौरव गान गाना होगा,
नाज है वीर जवानों पर
जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
अमन का पाठ पढ़ाने वाला शांति दूत है अपना भारत,
जब अमन पर आँच है आयी,
शहादत से न भय खाकर झट बदला ले आये है,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
धधक रही थी ज्वाला उनमें,
अपने रणबाँकुरों की शहादत पर,
जो हम सबको महफूज रखने की खातिर
पल-प्रतिपल मौत के साये में रहते,
नाज है उन वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।
घर-परिवार से दूर निर्जन में कर्त्तव्य निर्वहन करते,
संकल्प लेकर उनकी शहादत क्षण भर भी विस्मृत न होने दिए,
दुश्मन के घर में घुसकर मारे शान बढ़ाकर आये हैं,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं।।
हम सब भी अब चन्द फूल दो चार मालायें,
दीप जलाकर इतिश्री न कर लेवें,
उनके परिवारों को गले लगाकर कमज़ोर कभी न उन्हें होने देवें,
जिसे देखकर उनकी आत्मा हो कहि जो धरा स्वर्ग में,
देश पर अपने इठलाये,
नाज है वीर जवानों पर जो मान बढ़ाकर आये हैं
दुश्मन के घर में घुस के मारे,
शान बढ़ाकर आये।।
रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।
बहुत बहुत सुंदर
ReplyDelete