बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

मेरे घर बेटी जन्मी थी
जब मेरे घर बेटी जन्मी थी
मेरे मन में बहुत खुशी थी,
पर घरवालों की आँखों में नमी थी
मेरे घर बेटी .........
वो तो प्यारी नन्हीं सी परी थी,
फिर सभी की आँखों में क्यों नमी थी.........?????
मेरे घर बेटी...........
प्यार से पली,
और नाजों से बढ़ी थी
अब मेरी बिटिया बड़ी हो चली थी
मेरे घर बेटी............
सोचा खूब पढ़ाऊँगा, लिखाऊँगा
उसे बड़ा सा अफसर बनाऊँगा ।
इसी ख्वाब को पूरा करने,
आज मेरी बिटिया स्कूल चली थी
 मेरे घर बेटी............
रोज स्कूल ले जाता, खुद उसको तैयार करता
उसके मन मे अफसर बनने की उमंग भरता
उसकी परवरिश में न छोड़ी कोई कमी थी
मेरे घर बेटी............
खूब पढ़ती, हमेशा अव्वल आती
पापा-पापा कह खूब प्यार जताती
अब मेरी बिटिया सयानी हो चली थी
मेरे घर बेटी.............
एक दिन वो स्कूल से घर न लौटी
मेरे मन में चिंता हो बैठी
मेरे बिना वो एक कदम भी न चलती
फिर वो ऐसे कहाँ गुम हो गयी थी?
मेरे घर बेटी.............
खूब ढूंढा और तलाशा गली-गली
पर मेरी लाड़ली कहीं न मिली
अब मेरी आँखें बोझिल हो चली थी
मेरे घर बेटी.............
हरिया भागा-भागा आया
मेरी बेटी का हाल बतलाया
दरिंदों ने मेरी बेटी को नोंच
उसकी जान भी न छोड़ी थी
मेरे घर बेटी.............
आज समझ आया उसके पैदा होने पर
सबकी आंखों में इसी "डर" से नमी थी
मेरे घर बेटी  ........
आज मेरी भी आँखों में नमी थी क्योंकि,
मेरे घर बेटी जन्मी थी.....

रचयिता
रीनू पाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय दिलावलपुर,
विकास खण्ड - देवमई,
जनपद-फतेहपुर।

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