हमसे मत टकराना
जमी विश्व में धाक हमारी
कहाँ गई अब नाक तुम्हारी
पहले तुमनें ईंटें फेंकीं
अब आई भारत की बारी
कहाँ गई अब नाक तुम्हारी
ये भारत की सेनाएँ हैं
बेटा! इनसे मत टकराना
इनसे टकराने का मतलब
है लोहे के चने चबाना
घर में बैठो रहो मौन तुम
वरना होगा फिर पछताना
कहाँ गई अब नाक तुम्हारी
अब गफलत में ना आ जाना
वरना होगा नहीं ठिकाना
हम भारत के बब्बर शेर हैं
बिना मौत के मत मर जाना
बार-बार परमाणु बम की
हमको धौंस नहीं दिखलाना
बहुत कठिन हो जाएगा
पिण्डी और लाहौर बचाना
बेटा! हमसे मत टकराना
कबसे चाह रहीं सेनाएँ
वहाँ तिरंगा है फहराना
क्रिकेट नहीं मैदाने जंग है
सरल नहीं छक्के लग पाना
बेटा! हमसे मत टकराना।
कहाँ गई अब नाक तुम्हारी
पहले तुमनें ईंटें फेंकीं
अब आई भारत की बारी
कहाँ गई अब नाक तुम्हारी
ये भारत की सेनाएँ हैं
बेटा! इनसे मत टकराना
इनसे टकराने का मतलब
है लोहे के चने चबाना
घर में बैठो रहो मौन तुम
वरना होगा फिर पछताना
कहाँ गई अब नाक तुम्हारी
अब गफलत में ना आ जाना
वरना होगा नहीं ठिकाना
हम भारत के बब्बर शेर हैं
बिना मौत के मत मर जाना
बार-बार परमाणु बम की
हमको धौंस नहीं दिखलाना
बहुत कठिन हो जाएगा
पिण्डी और लाहौर बचाना
बेटा! हमसे मत टकराना
कबसे चाह रहीं सेनाएँ
वहाँ तिरंगा है फहराना
क्रिकेट नहीं मैदाने जंग है
सरल नहीं छक्के लग पाना
बेटा! हमसे मत टकराना।
रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
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