फौजी की पत्नी की व्यथा

फौजी की पत्नी होना, कर जाता है सर को ऊँचा।
जांबाज, बहादुर, देश का सेवक और कहाँ है दुनिया में दूजा।।
फौजी की पत्नी......

उसके जीवन का तो आधार वही है।
उसकी जीवन नौका का तो पतवार वही है।
बिन पतवार, नौका झंझावातों को कहाँ झेल पाती है।
उसके जीवन का तो आधार वही है।।
फौजी की पत्नी.......

सीमा पर तैनात प्रीतम को घण्टों फोन मिलाती है।
उस पर भी जब मिले न खबर उनकी तो, दुःख के आँसू बहाती है।
अचानक कभी, मिल जाये फोन तो
आवाज सुनकर वो बहुत खुश हो जाती है।।
फौजी की पत्नी.....

होता बहुत कुछ है कहने को पर, दो क्षड़ मे कहाँ सब कहा जा पाता है।
तसल्ली उसको है फिर भी, क्योंकि अहसास तो है, उनके साथ का।।
फौजी की पत्नी.....

याद कर कुछ बीती बातें।
कभी वो हँसती, कभी है रोती, फिर चुपके से पोंछ आँखों को, बैठ जाती लेकर, उनकी कुछ तस्वीरें।।
फौजी की पत्नी......

हर पल अपने प्रीतम की वो खैर मानती रहती।
जीवन रहे सुरक्षित उनका, यही वो हर पल चाहती है।
आँच न आने पाये कोई, पल-पल यही मनाती जाती है।।
फौजी की पत्नी...... 

रचयिता
रंजना,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय रेवाड़ी, 
विकास खण्ड-मालवा, 
जनपद-फतेहपुर।

Comments

Post a Comment

Total Pageviews