बढ़ता चल
धीरे-धीरे बढ़ता चल
अपनी तू तकदीर बदल
विद्यालय के प्रांगण से ही
बेहतर होगा तेरा कल
यहाँ जो भी आया है
देखो क्या-क्या पाया है
भीमराव, फुले, गांधी
बन कलाम जगत में छाया है
आगे बढ़, कुछ जोर लगा
तू भी होगा निश्चित सफल।
यहाँ नित पूजा करनी होगी
यदा-कदा का काम नहीं
तपकर कुंदन बनता सोना
जल्दी का कोई काम नहीं
मेहनत से जो चूकोगे
तो कैसे मीठा होगा फल।
निरक्षरता की गलियों मे
केवल अन्धेरा छाया है
छोटे-छोटे स्वार्थों में
घने दुख का साया है
अन्धकार से लड़ने को तू
लेकर एक मशाल निकल।
विद्यालय के प्रांगण से ही
बेहतर होगा तेरा कल।
रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रतरोई,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।
अपनी तू तकदीर बदल
विद्यालय के प्रांगण से ही
बेहतर होगा तेरा कल
यहाँ जो भी आया है
देखो क्या-क्या पाया है
भीमराव, फुले, गांधी
बन कलाम जगत में छाया है
आगे बढ़, कुछ जोर लगा
तू भी होगा निश्चित सफल।
यहाँ नित पूजा करनी होगी
यदा-कदा का काम नहीं
तपकर कुंदन बनता सोना
जल्दी का कोई काम नहीं
मेहनत से जो चूकोगे
तो कैसे मीठा होगा फल।
निरक्षरता की गलियों मे
केवल अन्धेरा छाया है
छोटे-छोटे स्वार्थों में
घने दुख का साया है
अन्धकार से लड़ने को तू
लेकर एक मशाल निकल।
विद्यालय के प्रांगण से ही
बेहतर होगा तेरा कल।
रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रतरोई,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।
बहुत प्रेरणादायक
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