हम तुमको शीश नवाते हैं

कितनी बार श्रद्धांजलि दें
और कितनों को श्रद्धांजलि दें।
किस सुहागन को धीरज बँधाएँ
किस-किस माँ के आँसू पोंछें।
गोदी के बच्चे क्या जानें
क्या चीज शहादत होती है।
क्यों उनकी माँ बार-बार
जार-जार हो रोती है।
एक चिता की आग अभी
ठण्डी भी नहीं हो पाती है।
लिपट तिरंगे में ताबूतों में
कई चिताएँ आती हैं।
ये यक्ष प्रश्न है बार-बार
ये घटनाएँ क्यों होती हैं।
हर बार मेरी भारत माँ की
छाती छलनी क्यों होती है।
अब और नहीं बस और नहीं
ये हरगिज नहीं सहेंगे हम।
खून का बदला खून सही
बदला तो लेके रहेंगे हम।।
आँखें भर-भर आती हैं
और शब्द नहीं बन पाते हैं।
मूक नमन स्वीकार करो
हम तुमको शीश नवाते हैं।।

रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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