ग्लोब की समझ

पाठ -2
कक्षा 5
विषय -हमारा परिवेश(सामाजिक विषय)

कविता को 2 भागो में बाँटा गया है-
1.उत्सुकता जगाने हेतु
2.ग्लोब को समझाने हेतु

(1)
बच्चों मुझे बताओ,
पृथ्वी कैसी कहलाये?
किसी बच्चे ने कहा,
गेंद जैसी कहलाये।

फिर मैंने एक गेंद बनाकर,
उसमे रेखाजाल बिछाया।
बच्चों को फिर मैंने पूछा,
क्या कुछ समझ में आया?

हैरानी से फिर बच्चों ने कहा,
है कैसा मायाजाल?
मैंने कहा ये जाल बहुत आसान।
थोड़ी सी समझ और ध्यान से,
हो जाये कमाल।

गेंद जैसे दिखने वाला,
ग्लोब ये कहलाये।

(2)

देखो गेंद को पर समझो ग्लोब को
ग्लोब के बीचोंबीच रेखा,
भूमध्य रेखा कहलाये।
पृथ्वी के बीच से गुजरे,
बीचों बीच में पायी जाए।
भूमध्य रेखा से काटो अगर तो,
दो हिस्से मिल जाएँ।
ऊपरी हिस्सा उत्तरी गोलार्द्ध तो,
निचला दक्षिणी गोलार्द्ध कहलाये।
भूमध्य रेखा उत्तर की ओर,
कर्क रेखा कहलाये।
अगर हो दक्षिण की ओर,
मकर रेखा कहलाये।
खड़ी रेखाएँ देशांतर तो,
पड़ी रेखाएँ अक्षांश कहलाएँ।
फिर किसी ने समझ के पूछा,
रेखा जाल कहाँ से आये?
असल में रेखाजाल है ही नहीं,
इसलिए काल्पनिक रेखाएँ कहलाये।
इसकी मदद से आसान हो जाए,
कौन, कहाँ है पता लगाएँ।
भूमध्य से उत्तरी छोर पहुँचे
पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव कहलाये।
भूमध्य से दक्षिण की ओर चलो तो,
दक्षिणी ध्रुव पर पहुँच जाएँ।
ग्लोब तो बहुत प्यारा है,
एशिया के दक्षिण में भारत हमारा है।
अगर समझ न आये तो,
फिर से दोहराएँ।

रचयिता
रीना सैनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गिदहा,
विकास खण्ड-सदर,
जनपद -महाराजगंज।

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