लहू पुकार उठा

जगो! शहीदों की छाती का
लहू पुकार उठा

क्षुब्ध तरंगों वाले सागर
 में भी ज्वार उठा

आज अहिंसा को
बैरी ने कमजोरी समझा

शांति त्याग कर तरुण देश
 के अब हथियार उठा

आज हिमालय दुःखी हुआ है
  तेरी शांति से
शांति की रक्षा करने को
अब तलवार उठा

गीता के उपदेश हृदय
में धारण करके
अर्जुन का गांडीव धनुष
फिर से टंकार उठा

वीर शिवा, राणा प्रताप
अब जाग उठे
देश धर्म पर बच्चा-बच्चा
तन-मन वार उठा

नेत्र तीसरा खोल रहे हैं
भोले शंकर भी
हुम-हुम करके उनका  नंदी
भी हुँकार उठा

चामुण्डा जग गई
हाथ में खप्पर लेकर
शेरों वाली का शेरा
अब ललकार उठा

जगो!! शहीदों की छाती का
लहू पुकार  उठा।

रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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