98/2024, बाल कहानी-23 मई


बाल कहानी- देवदूत
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एक अध्यापिका प्रतिदिन की तरह आज भी अपने विद्यालय के लिए स्कूटी से निकली। गाँव में पहुँचते ही शिक्षिका ने देखा कि कुछ बच्चे कुत्ते के एक छोटे से बच्चे को परेशान कर रहे हैं। शिक्षिका ने अपनी स्कूटी रोकी और उन बच्चों  से उस कुत्ते के बच्चे को परेशान न करने को कहा। बच्चे शिक्षिका के द्वारा डाँटने पर इधर-उधर हुए और जैसे ही शिक्षिका ने अपनी गाड़ी आगे बढ़ायी। वह बच्चे फिर से उस कुत्ते के बच्चे को परेशान करने लगे। कोई बच्चा उसे पैर से मारता, कोई छोटे-छोटे पत्थर उठाकर उसे मारने लगे। वह कुत्ते का छोटा सा बच्चा कु-कु करता इधर-उधर भागने लगा।
शिक्षिका ने फिर अपनी गाड़ी मोड़ी और उन बच्चों के पास पहुँच गयी। बच्चे शिक्षिका को देखते ही भागने लगे। शिक्षिका ने सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और बच्चों को समझाया कि-, "ऐसा काम नहीं करते।" बच्चे यह सब सुनकर हँसने लगे। तभी शिक्षिका ने उन बच्चों में से एक बच्चे का कान दबाया, तब वह बच्चा बोला-, "मैंम! दु:खता  है।" तब उस शिक्षिका ने कहा-, "इस दर्द से भी ज्यादा दर्द इस कुत्ते के बच्चे को हो रहा होगा, जब तुम सब इसको परेशान करते हो, मारते हो। यह असहाय जीव है। हम इसके लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो हमें इन्हें परेशान भी नहीं करना चाहिए। इन जानवरों को भी दर्द होता है, भूख लगती है, प्यास लगती है। इन्हें भी हम इन्सानों की तरह प्यार की आवश्यकता है, पर यह अपनी तकलीफों को बोलकर नहीं कह सकते, इसीलिए हमें किसी भी जीव के कष्ट का कारण नहीं बनना चाहिए।" 
अब सभी बच्चे समझ चुके थे कि उनके मारने से उस कुत्ते के छोटे से बच्चे को भी दर्द हो रहा है। 

संस्कार सन्देश-
दया करो इन मूक जीवों पर।
ईश्वर के देवदूत हैं यह धरा पर।।

लेखिका-
रचना तिवारी (स०अ०)
प्रा० वि० ढिमरपुरा  पुनावली, कलां (बबीना) झाँसी (उ०प्र०)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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