91/2024, बाल कहानी-15 मई
बाल कहानी- लालच
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नाथूराम नाम का एक व्यक्ति गाँव में निवास करता था। वह गाँव में नहर के किनारे लगे हुए सरकण्डे और पतेल काट कर लाता था और उनसे बहुत ही सुन्दर टोकरियाँ बनाता था, पर नाथूराम की टोकरियाँ गाँव में नहीं बिक पाती थीं और न ही शहर के बाजार में ज्यादा बिकती थीं।
एक दिन नाथूराम ने बाजार में अपनी टोकरियाँ लगा रखी थीं। अचानक उस दिन वहाँ पर दूसरे शहर का ओमवीर नाम का व्यक्ति घूमने आया। उसकी नजर नाथूराम की टोकरियों पर पड़ी। उसे वह टोकरियाँ बहुत पसन्द आयीं। और उसने कहा कि-, "वह दूसरे शहर ले जाकर उन्हें बेचेगा। सारी टोकरियाँ उसे दे दो और उनकी कीमत ले लो।" नाथूराम ने सारी टोकरियाँ उसको दे दी। ओमवीर ने कहा-, "वह हर हफ्ते आएगा और उसकी टोकरियाँ लेकर जायेगा।" इसके बाद ओमवीर हर हफ्ते आता और नाथूराम को पैसे देकर उसकी टोकरियाँ ले जाता था।
अब नाथूराम की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गयी थी।
एक दिन गाँव का एक व्यक्ति नाथूराम से बोला-, "ओमवीर तुम्हें कम पैसे देता है और खुद ज्यादा रख लेता है। वह उसे टोकरियांँ देना बन्द कर दे और यहीं बेचा करे। उसने सुना है कि शहर में बहुत महँगी चीजें जाती हैं।" नाथूराम ने अगली बार से ओमवीर को टोकरियाँ देने से मना कर दिया।
नाथूराम ने फिर से अपनी टोकरियाँ शहर और गाँव के बाजार में लगायीं, मगर उसकी बिक्री फिर से कम हो गयी। नाथूराम को समझ में आ गया कि उसने बहुत बड़ी गलती की है। "काश! कि उसने लालच नहीं किया होता और दूसरे के बहकावे में नहीं आता।" नाथूराम ने दोबारा से ओमवीर से सम्पर्क किया और फिर से उसे अपनी टोकरियाँ देना शुरू कर दिया, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति दोबारा अच्छी हो गयी और वह समझ गया था उसे दूसरों की बातों में नहीं आना चाहिए बल्कि अपने दिमाग की बातें सुननी चाहिए थीं।
संस्कार सन्देश-
हमें कभी दूसरे के बहकावे में नहीं आना चाहिए। हमें स्वयं निर्णय लेना चाहिए।
लेखिका-
शालिनी (स०अ०)
प्रा० वि०- बनी
अलीगंज (एटा)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
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