94/2024, बाल कहानी-18 मई


बाल कहानी- चाँद सितारे 
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जय और प्रेम शाम के वक्त अपने घर की छत पर खेल रहे थे। खेलते-खेलते रात हो गयी। माँ ने आवाज दी-, "बच्चों! नीचे आ जाओ। कितना खेलोगे? तुम्हारे पिता जी के आने का समय हो गया है। नीचे आ जाओ और खाना खा लो।"
जय बोला-, "माँ आ रहा हूँ। प्रेम! चलो, माँ बुला रही है। तुम आसमान में क्या देख रहे हो?
"जय भाई! आसमान में ये बल्ब चमक रहा है और कितना अच्छा लग रहा है! बहुत से बल्ब है आसमान में। देखो, तुम भी।"
"हाँ.. हाँ.. हाँ! तुम हँस क्यूँ रहे हो? तुम्हारी बातों से हसीं आ गयी, वो बल्ब नही चाँद सितारे है।"
"अच्छा चाँदे-सितारे हैं। ये कितने प्यारे है?"
"अरे, नहीं महा मूर्ख! वो चाँद-सितारे हैं। चाँदे-सितारे नहीं। चाँद एक है, इसलिए चाँद कहेंगे,
सितारा अनगिनत है इसलिए सितारे कहेंगे।" प्रेम जय की बात सुनकर रोने लगा।
"अरे! मैंने तुम्हें हकीकत बतायी और तुम रो रहे हो, क्यों?
"जय भाई! आपने मुझे महा मूर्ख कहा, इसलिए रो रहा हूँ।"
दोनों की बातें सुनकर माँ आ गयी। माँ ने जय को प्यार से समझाया कि-, "प्रेम! तुम से छोटा है। तुम्हारा फर्ज है, छोटे भाई के सवालों को सुलझाना और सही जवाब देना। वो भी बिना तकलीफ पहुँचाये।"
फिर माँ ने जय को समझाया-, "बेटा! जरा-जरा सी बात पर रोते नहीं हैं, वरना कैसे बहादुर बच्चे बनोगे?"
जय और प्रेम को माँ की बात समझ आ गयी। दोनों ने एक-दूसरे से सॉरी बोलकर माँ से वादा किया कि, "माँ! हम दोनों अब गलती नहीं करेगे और अच्छे बच्चे कहलायेंगे।" यह सुनकर माँ बहुत प्रसन्न हुई और दोनों बच्चों को हृदय से लगा लिया। 

संस्कार सन्देश-  
सवाल पूछना अच्छी बात है। धैर्य के साथ जवाब देना और भी अच्छी बात है।

लेखिका-
शमा परवीन 
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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