96/2024, बाल कहानी-21 मई
बाल कहानी- शिक्षा का महत्व
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एक गाँव में एक गरीब परिवार रहता था। वह परिवार एक संयुक्त परिवार था। उस परिवार में एक अट्ठारह वर्ष का लड़का रहता था। वह बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। उसका नाम मोहन था। मोहन के परिवार में दादा-दादी, माता-पिता और उसके भाई-बहन रहते थे। मोहन ने अब तक ग्यारह कक्षाएँ पास कर दी थीं। हर बार कक्षा में प्रथम आता था। परिवार वालों को उस पर बहुत विश्वास था कि वह उनका नाम रोशन जरूर करेगा।
बारहवीं कक्षा में में आते ही वह बुरी संगत में पड़ गया और वह गलत दोस्तों के साथ घूमने-फिरने लगा। इसी कारण वह बारहवीं में फेल हो गया। जब उसे यह बात पता चली तो वह एक कमरे में एकान्त बैठ गया। चिन्ता के कारण अब तो उसने खाना-पीना भी बन्द कर दिया।
एक बार मोहन के घर पर प्रिन्सिपल सर का न्योता आया मोहन के लिए। मोहन किसी से मिलना नहीं चाहता था, पर प्रिन्सिपल सर की बात को भी तो नहीं टाल सकता था। वह प्रिन्सिपल सर के घर गया। वहाँ सर एकान्त में बरामदे में बैठे हुए थे। वह भी उनके पास जाकर बैठ गया। सर्दी का मौसम था। वे दोनों अँगीठी पर हाथ गर्म कर रहे थे। कुछ मिनटों तक दोनों चुपचाप बैठे रहे। फिर सर ने अँगीठी में से कोयला बाहर निकाल कर मिट्टी में रख दिया। फिर कोयला बुझ गया। इस पर मोहन ने कहा-, "सर! आपने ये क्या किया? जलते हुए कोयले को बाहर निकाल दिया। आपने एक कोयला बर्बाद कर दिया।" सर ने कहा-, "यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था। तुम भी इस कोयले की तरह हो। जब तुम अच्छी संगति में रहते थे, तब पढ़ते थे, कक्षा में टॉप पर रहते थे। जब तुम बुरी-संगत में पड़ गये, तो पढ़ना छोड़ दिया, मेहनत छोड़ दी। पर इसका मतलब यह नहीं कि तुम दोबारा मेहनत नहीं कर सकते, तुम पढ़कर आज भी अपनी कक्षा के टॉपर बन सकते हो। जिस प्रकार यदि हम इस बुझे हुए कोयले को दोबारा अंगीठी में डालें, तो यह फिर से जलने लगेगा।" अब मोहन प्रिन्सिपल सर की बात समझ गया और तब से वह जी-जान लगाकर पढ़ाई करने लगा।
संस्कार सन्देश-
एक बार असफल होने से कोई बार-बार असफल नहीं होता। हमें लगातार मेहनत करनी चाहिए।
लेखिका-
आईना (छात्रा)
ग्राम व पोस्ट- बाडेट, झुंझुनूं (राजस्थान)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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