महिला सशक्तिकरण विशेषांक-296

*महिला सशक्तिकरण विशेषांक-296*

*मिशन शिक्षण संवाद परिवार की बहनों के संघर्ष और सफ़लता की कहानी-*
(दिनांक 19.05.2024)


नाम- *अलका शुक्ला*
पदनाम- *सहायक अध्यापक*
विद्यालय- *प्राथमिक विद्यालय हीरागंज*
       
*सफलता एवं संघर्ष की कहानी:-*
◆प्रथमनियुक्ति- 30.08. 2016
◆वर्तमान नियुक्ति- 30.08.2016
◆प्रारम्भिक परिचय- अलका शुक्ला
BA, MA, BTC, PGDCA, IGD, Fashion Designing
◆वर्तमान कार्य क्षेत्र- प्राथमिक विद्यालय हीरागंज

*विद्यालय की समस्या एवं समाधान-*
30 अगस्त 2016 को प्राथमिक विद्यालय हीरागंज में प्रथम नियुक्ति हुई। विद्यालय में जॉइनिंग के बाद मन में एक उत्साह था कुछ करने का कुछ बदलाव लाने का लेकिन जब हम किसी जगह पर रहते हैं तभी हमें वहां की वास्तविकता का ज्ञान हो पाता है।
कुछ ही दिनों में यह अच्छे से पता चल गया कि विद्यालय तो बस टाइम पास करने और पैसा कमाने का बस एक जरिया बना है। जिस काम के लिए अध्यापक यहां नियुक्त है वह तो हो ही नहीं रहा। कोई सिस्टम कोई व्यवस्था कोई अनुशासन नहीं। बेजान नीरस बस ईंट की इमारत। बच्चों के पानी पीने तक की कोई व्यवस्था नहीं। चारों तरफ सिर्फ गंदगी ही गंदगी। विद्यालय में कुछ है तो सिर्फ तानाशाही। बच्चे हर टाइम घूमते खेलते लड़ाई करते पढ़ाई से तो दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं। विद्यालय का ऐसा वातावरण जो यह महसूस ही न होने दे कि मैं एक टीचर हूं। बस यही माहौल बदलना मेरे लिए चैलेंज था। सबसे पहले मैंने बच्चों के साथ मेल जोल बढ़ाया
उनके साथ बातें करना खेलना कई तरीके की एक्टिविटी कराना। ताकि बच्चे मेरी बात सुनें - समझे और अनुशासित हों। नल तो था लेकिन कई सालों से खराब पड़ा था। नल को ठीक कराने के लिए कई बार एप्लीकेशन दिया। बहुत समय बाद लेकिन नल भी ठीक हुआ और आज विद्यालय में बाउंड्री और शौचालय भी बनकर तैयार हैं। बच्चों को कई तरह के खेल एक्टिविटी द्वारा खुद से जोड़ा। आज विद्यालय का एक-एक बच्चा अनुशासित है।पढ़ने के लिए प्रेरित है। TLM से भरी क्लास है जहां मैं रहूं ना रहूं बच्चे अपनी पसंद से पढ़ाई करते हैं वो भी मन लगाकर। मैंने औरों को देखकर अपने इरादे नहीं बदले बल्कि अपनी मेहनत लगन और जुनून से माहौल को बदल दिया।

*विद्यालय की उपलब्धियां:-*

_"लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हर नहीं होती"_

    बस इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए मैंने कार्य किया। आज विद्यालय में पढ़ाई का पूर्ण वातावरण है। विद्यालय में अनुशासन है। विद्यालय में TLM से भरी एक बहुत ही खूबसूरत क्लास है। आज बच्चे लंच में भी पढ़ने के लिए उत्सुक रहते हैं। मेरे कहने पर भी खेलने के लिए बहुत ही कम जाते हैं और खेलना भी है तो बस मेरे साथ। विद्यालय में पानी, बाउंड्रीवाल ,शौचालय आदि की समुचित व्यवस्था है। आज बच्चे पूरे मन के साथ विद्यालय में उपस्थित होते हैं। मन लगाकर पढ़ाई करते हैं। यहां तक की बच्चे छुट्टी में भी घर जाने का मन नहीं करते बोलते हैं मैंम थोड़ी देर और रुकजाते हैं। आज मैं गर्व के साथ कह सकती हूं कि  मैंने विद्यालय को आनंद घर बनाया है। जहां न सिर्फ बच्चे, मैं स्वयं भी  आनंदित रहती हूं।

*स्वयं के जीवन के संघर्ष एवं सफलताएं:-*
   इतिहास गवाह है संघर्ष किए बिना किसी मुकाम को हासिल नहीं किया जा सकता हैं। मेरा भी जीवन बचपन से ही संघर्ष पूर्ण रहा या यूं कहा जाए संघर्ष अभी जारी है मेरे दोस्त। बचपन से ही कई जिम्मेदारियो के साथ बड़ी हुई साथ ही अपनी पढ़ाई भी पूरी की पढ़ाई के साथ-साथ मैंने अपने सारे शौक भी पूरे किए। लोगों में कोई एक टैलेंट होता है पर भगवान ने मुझे मल्टी टैलेंटेड बनाया और उतनी ही शरारती भी। जिस वजह से मैं अपने पूरे गांव की चहेती हमेशा से रही।
सभी मुझे मेरे काम से बहुत पसंद करते, चाहे किसी के घर की बिजली बनाना हो, या स्कूटर से किसी को कहीं ले जाना हो, किसी के कपड़े सिलने हो, किसी के पेड़ से आम तोड़ने हो, या किसी की कोई मदद करनी हो। घर का कोई भी ऐसा काम नहीं जो मैं ना कर सकूं। हालांकि मेरी वजह से कुछ बच्चों को डांट भी पड़ती कि उससे कुछ सीखो। और मेरे पास शिकायत आती कि तुम्हारी वजह से डांट पड़ती है। घर में कभी लड़के और लड़की में फर्क किया ही नहीं गया। मुझे कभी यह बोला ही नहीं गया कि तुम्हें यह करना चाहिए यह नहीं ऐसे रहना चाहिए ऐसे नही। मैं भाईयो के साथ मैदान में क्रिकेट खेलती दोस्तों के साथ हंसी मजाक और अपनी गैंग के साथ खेत में चने और आम की चोरी भी। और जब बाबा चिल्लाते हुए दौड़ाते तो बोलते, *'जहां जाओगी सोने का दिया जलाओगी'* तो मैं भी ये पूछते हुए भाग लेती बाबा यह तो बता दो *'बाती किस चीज की होगी'* लेकिन शायद नए विचारों खुले आसमान में उड़ने वाली लड़की का जीवन बस तभी तक है। जब तक वह अविवाहित है शादी के बाद तो जैसे उसका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं उसका सपना उसका अपना जीवन कुछ भी मायने नहीं रखता। बिल्कुल ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ शादी के बाद जीवन पूरी तरह से बदल गया।
सारे सपने सारे अरमान पल भर में बिखर गए। शादी ऐसी जगह हो गई जहां की स्त्रियों को घर के बाहर कदम भी रखने नहीं दिया जाता था। घूंघट ,जेवर साथ में पति का नाम बस यही स्त्री की पहचान। स्त्री को अपने पैरों की धूल से ज्यादा और कुछ नहीं समझा जाता था। स्त्री मतलब कुछ नहीं। क्या घूंघट जेवर और घर के सारे काम कर लेना ही बस यही अच्छी बहू होने की पहचान है ? पर मैं तो वह भी कर लेती थी। लेकिन जीवन में और भी तो बहुत कुछ है करने के लिए।
मैंने तो कभी ऐसे जीवन की कल्पना भी ना की थी जो आज मेरे सामने खड़ा था। पता ही नहीं था की जिम्मेदारियो को निभाने के लिए अपने सारे सपनों को छोड़ना पड़ेगा जीवन इतना बदल जाएगा कि मैं खुद को ही खो दूंगी । कुछ समय के लिए तो लगा मैं डिप्रेशन में चली जाऊंगी हंसना तो जैसे भूल ही गई थी जीवन इतना बोझ लगने लगेगा ऐसा कभी सोचा ही नहीं था। घर वाले भी शादी करके अपनी जिम्मेदारियो से पूरी तरह से मुक्त हो चुके थे। किसी को तनिक भी मेरी परवाह नहीं। सही भी था, किसी को क्या पड़ी मेरी खुशी का ख्याल कोई क्यों रखे। जीवन मेरा सपने मेरे तो उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी भी तो मेरी ही हैं। अगर आज मैं अपनी खुशी को किसी और के माध्यम से ढूंढ रही हूं तो बेकार है ऐसा जीवन जो हर कदम पर किसी को अपना सहारा बनाना पड़े। मेरे पास सिर्फ दो रास्ते थे या तो मैं उन परिस्थितियों को स्वीकार कर लूं और खुद को उसी माहौल में ढाल लूं। और अपना पूरा जीवन बिना किसी अस्तित्व के बिता दूं। या उन परिस्थितियों का विरोध कर अपने जीवन को सवार लूं। मेरा जीवन है तो फैसला भी मुझे ही लेना था। उदासी या तनाव भरा जीवन या खूबसूरत जीवन का चुनाव। बचपन से ही जो चाहा वह करके ही दम दिया तो आज कहां डर के पीछे हटने वाली थी यह फैसला तो मेरा पूरा जीवन निर्धारित करेगा। उन परिस्थितियों का विरोध कर मैने अपनी जिद से पढ़ाई भी पूरी कर ली।
सबको बस यही लगता BTC कर लेने दो फिर चुप होकर बैठ जाएगी कहां नौकरी मिलने वाली हैं। पर मेरी सच्ची मेहनत और लगन रंग लाई पढ़ाई पूरी होते ही मेरी 2016 में नौकरी भी लग गई।
*मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।*
हालांकि इस दौरान कई विषम परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ा। नौकरी तो मिल गई पर जिस घर से कभी कोई स्त्री घर के बाहर कदम तक ना रखी हो। वहाँ मेरा रोज का आना जाना किसी को पसंद ही ना था। रोज सब की कई तरह की बातें सुनने को मिलती घर का सारा काम करती और रो कर सो जाती। कभी बातें इतनी बुरी लग जाती लगता सब छोड़ कर कहीं और चली जाऊं। पर भगवान ने ऐसा नेचर भी ना दिया कि मैं अपनी तरफ से घर वालों को किसी तरह की तकलीफ दे सकूं। फिर इस फैसले से तो हर कोई प्रभावित होता। इतना तनाव भरा जीवन शरीर मेरा बीमारी की तरफ बढ़ने लगा। खुद को ठीक करने के लिए योग का सहारा लिया। फिर धीरे-धीरे ध्यान, प्राणायाम और अध्यात्म से खुद को जोड़ा। स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित कर दिया। अपने जीवन शैली में बदलाव किया खुद को काम में इतना व्यस्त किया कि किसी के प्रति मेरा ध्यान ही ना जाए। कोई क्या कर रहा है क्यों कर रहा है क्या कह रहा है क्यों कह रहा है।
मैंने सिर्फ और सिर्फ अपने काम को महत्व देना शुरू किया। दृढ़ इच्छा शक्ति से मैंने कुछ ही दिनों में खुद को पहले जैसा पाया और अपने चेहरे पर पहले जैसी ही मुस्कान। अब कुछ सुनने कुछ अफसोस करने का टाइम ही नहीं अब मैं अपने काम में व्यस्त हूं मन शांत और पूरी तरह से आनंदित।
सच कहते हैं लोग वही मस्त है जो अपने  काम में व्यस्त है। अब कोई कुछ भी कहे कुछ भी बोले कुछ भी बुरा नहीं लगता। अब बस मुझको मेरा काम पसंद है, मुझको ना आराम पसंद है।
सुनती हूं सबकी, करती हूं मन की। सब अच्छे हैं। सब पूर्व निर्धारित है। तो वह तो होना ही है। फिर किसी को क्या दोष देना।
विषम परिस्थितियाँ जब सामने आती है तो हमें घबराना नहीं चाहिए। धैर्य के साथ सामना करना चाहिए क्योंकि यह हमारे जीवन को और बेहतर बनाने, हमें और निखारने आती है। बस जरूरत है अपने गुस्से को सही दिशा देने की मैंने हमेशा यही किया अपने गुस्से को सही दिशा दिया। गुस्से को शब्दों का रूप देकर पन्नों पर लिख दिया जो मेरी रचना और ताकत बन गई। जिनमें से एक यह भी है...

मैं तब तक सहती रहती हूं
जब तक मैं सहना चाहूं।
ना चाहूं तो क्षण भर में
तुमको मिट्टी में मिलाऊं।
मैं चाहूं तो पल भर में ,
इस घर को स्वर्ग बनाऊं।
ना चाहूं तो छड़ भर में,
इस घर को नर्क बनाऊं।
तुम क्यों कमजोरी समझते हो
मेरी इस सहनशक्ति को।
मैं चाहूं तो पल भर में
तुमको दिन में तारे दिखलाऊं।

   मैं ऐसा कर तो नहीं सकती थीं पर इसे पढ़कर आनंदित और उत्साहित जरूर हो जाती थी।
"अक्सर गुस्से में कई लोग बिखर जाते हैं। और कुछ बेहतर करके निखर जाते हैं"।

   कहते हैं ना परिवर्तन अचानक से नहीं होता समय लगता है। समय भी बदला और परिस्थितियां भी आज मेरी नौकरी मेरा निर्णय और स्त्री का सम्मान करना सब सीख गए। वह सब देख रहा है, आपकी प्रार्थना, आपका संघर्ष, आपकी तकलीफे, आपका संयम, और कर्म भी।

*स्वयं की उपलब्धियां :-*

मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि मेरे द्वारा किया गया प्रयास सफल रहा यह तो मेरे द्वारा किया गया छोटा सा प्रयास की पहली सीढ़ी है।
*जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है, जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी है। अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीन हमने, अभी तो सारा आसमान बाकी है।*

1-मेरे द्वारा विद्यालय में नवीन विचार व नवाचार का प्रयोग करके बेहतर शिक्षण के लिए BEO मैम द्वारा BRC पर मुझे प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
2-जिला स्तरीय योग प्रतियोगिता में डायट प्राचार्य द्वारा सम्मानित किया गया।
3-पंचम राज्य स्तरीय योग प्रतियोगिता में बेसिक शिक्षा मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।

*मिशन शिक्षण संवाद के लिए संदेश:-*
मिशन शिक्षण संवाद द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान को निरंतर एक दूसरे से सीखते हुए सफल बनाएं। *आओ हाथ से हाथ मिलाएँ बेसिक शिक्षा का मान बढ़ाएं* विद्यालय को आनन्द घर बनायें, जिसमें बच्चे और आप स्वयं भी आनंदित हो। ज्ञान के दीप के साथ-साथ जीवन को भी खुशहाल बनाएं।

_✏️संकलन_
ज्योति कुमारी
*📝टीम मिशन शिक्षण संवाद।*

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