103/2024, बाल कहानी-29 मई



बाल कहानी - बदले समय का असर
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आज रिया बहुत खुशी-खुशी स्कूल से घर जा रही थी क्योंकि आज स्कूल में "विश्व माहवारी दिवस" पर डाक्टरों की टीम आयी थी, जिसमें गाँव की लड़कियाँ भी शामिल थीं। उन लङकियों ने बहुत सारे सवाल किए, जिनके डाॅक्टर मैम ने सही जवाब दिए। 
          घर पहुँच कर रिया ने कुछ बातें अपनी माँ को बतायीं। माँ ने पूछा-, "क्या प्रश्न पूछने वाली लङकियाँ तुम्हारे स्कूल में पढ़ती हैं?" रिया बोली-, "नहीं माँ! वे लड़कियाँ पहले पढ़ती थी, लेकिन महीने के उन तीन दिन में वे कैसै रहें, कहाँ जायें? उनके  समय में स्कूल में अलग शौचालय तथा इन्सीनरेटर न थे, जैसै कि आज हैं, इसलिए उन लोगों ने स्कूल छोड़ दिया था।"
          माँ ने पूछा-, " डाॅक्टर ने और क्या-क्या  बताया?" रिया बोली-, "डाॅक्टर मैम ने बताया है कि हमें साफ-सफाई स्वच्छता का ध्यान रखते हुए, दिन में तीन से चार बार पैड बदलना चाहिए। गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए। अधिक दर्द होने पर गर्म पानी की थैली या बोतल से सेंक लेना चाहिए तथा बटरफ्लाई एक्सरसाइज़ करनी चाहिए और उन्होंने एक बड़ी बात बतायी कि इन दिनों में हम रसोईघर में भी जा सकती हैं। इन दिनों में हम सामान्य दिनों की तरह सारे काम कर सकती हैं, वह चाहे स्कूल जाना हो या खेलना या अन्य कोई गतिविधि जो हमारे पसन्द की हो।"
      माँ-बेटी की बातचीत चलती रही। माँ के मन में बार-बार यह आ रहा था, काश! उसके जमाने में भी स्कूलों में ऐसे खुले मंच पर बोलने के अवसर होते, तो महीने के उन दिनों अनावश्यक दबाव और पाबन्दी से तो बच जाते। पर वह इस बात से खुश भी थी कि बदले माहौल में उसकी बेटी तो तनाव से बच पा रही है।

संस्कार सन्देश-
माहवारी एक अनिवार्य और आवश्यक शारीरिक प्रक्रिया है। बालिकाओं को सुशिक्षित करें, भ्रम दूर कर आगे बढ़ने का अवसर दें। 

लेखिका-
सरिता तिवारी (स०अ०)
कम्पोजिट स्कूल कन्दैला, मसौधा (अयोध्या)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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