90/2024, बाल कहानी-14 मई


बाल कहानी- आपसी फूट का परिणाम
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एक जंगल में चार मित्र रहते थे- चीनू कुत्ता, मिक्की बिल्ली, सोन चिड़िया और सुन्दर चूहा। चारों खूब हिल-मिलकर रहते और अपने भोजन का प्रबन्ध एक साथ आपसी समझ से करते थे। उन्होंने अपने सारे काम बाँट लिये थे। सोन चिड़िया का काम था- दानों का प्रबन्ध करना। सुन्दर चूहे का कार्य था- लकड़ियों का प्रबन्ध करना‌। चीनू कुत्ता पानी लाता था और मिक्की बिल्ली भोजन पकाती थी। 
सबको अपने-अपने कर्तव्यों का भली-भाँति ज्ञान था और वे सभी अपने दायित्व बखूबी निभाते थे। सबको आराम से भोजन की प्राप्ति हो जाती थी। वे एक-दूसरे से अपने सुख-दु:ख बाँट लेते थे। इस प्रकार उन चारों का जीवन आनन्द से कट रहा था।
एक बार उनके पड़ोस में एक टीनू नाम का कौआ बसने के लिए आ गया। उसने प्रार्थना की कि-, "वह भी वही अपना बसेरा करेगा। चारों को कोई आपत्ति नहीं थी। अब टीनू कौआ भी वहीं रहने लगा। पर धीरे-धीरे उसे उन चारों की एकता से ईर्ष्या होने लगी, पर उसे अवसर नहीं प्राप्त हो रहा था। 
एक दिन सारे साथी अपने-अपने कार्य से बाहर गये हुए थे। कौए ने सोन चिड़िया से कहा-, "बहन! बाकी सब तो आराम से बैठ कर खाते हैं और तुम दानों की तलाश में दूर-दूर तक भटकती रहती हो।" सोन चिड़िया ने टीनू को जोर की डाँट लगायी और अपने कार्य में व्यस्त हो गयी, पर कौआ कहाँ मानने वाला था? बारी-बारी से उसने सुन्दर चूहे, चीनू कुत्ते को भी अपना निशाना बनाया, पर उन लोगों ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और अपने कार्य में लगा रहा। कौआ चुपचाप वापस लौट गया। अब उसकी निगाह में बस एक प्राणी बचा था और वह थी मिक्की बिल्ली। उसने एक दिन अवसर पाकर मिक्की से कहा-, "बहन! मिक्की भोजन पका रही हो?"
मिक्की ने 'हाँ' में उत्तर दिया।
अरे! कितनी गर्मी है? मिक्की बहन! तुम चूल्हे के सामने कैसे बैठी हो, तुम्हे तो बहुत गर्मी लग रही होगी? मिक्की ने कहा-,"हाँ।" तब फिर कौए ने कहा-, "अरे बहन! मुझे लगता है कि सबसे कठिन काम तुम्हें ही सौंपा गया है। सब तो आराम से रहते हैं.. खाते हैं और तुम गर्मी में परेशान होती हो।" मिक्की सोच में पड़ गयी। उसे लगा कि बात तो सही है। बस! फिर क्या था? थोड़ी ही देर में मिक्की के दिमाग में यह बात बैठ गयी कि उसे सबसे अधिक काम करना पड़ रहा है और बाकी सब उसे बेवकूफ बना रहे हैं। कौआ अपना कार्य करके वहाँ से उड़ गया।    
सारे साथी जब वापस लौटे तो मिक्की का मुँह फूला हुआ था। सोन चिड़िया, सुन्दर चूहा और चीनू कुत्ते सबने पूछा-, "क्या हुआ मिक्की.. तबियत खराब है क्या?" मिक्की बिफर पड़ी! उसने कहा-, "तुम सबने मुझे बेवकूफ समझा है। सबसे कठिन काम मुझे सौंपकर सब लोग मौज मनाते हो। काम का बँटवारा फिर से होगा। अब सोन चिड़िया भोजन पकायेगी.. चीनू लकड़ियाँ लायेगा.. सुन्दर चूहा पानी लायेगा और मैं दाने लाऊँगी। फिर
दूसरे दिन सब इसी तरह से काम में लगे। मिक्की जब जंगल में दाने चुनने गयी तो उसे जंगली कुत्तों के झुण्ड ने दौड़ा लिया। बड़ी मुश्किल से मिक्की ने अपनी जान बचायी और खाली हाथ घर को लौटी। इधर सोन चिड़िया को चूल्हे के सामने बैठने का अभ्यास नहीं था। उसके पंख झुलस गये। सुन्दर चूहा पानी लेने के लिए जब नदी किनारे पहुँचा तो पानी के बोझ से नदी में गिरते-गिरते बचा।
चीनू कुत्ते का लकड़ियों के चक्कर में भेड़ियों से सामना हो गया। इस प्रकार मूर्खतापूर्ण नयी व्यवस्था में सभी परेशान हो गये। भोजन नहीं मिला, सो अलग! जब सारे मित्रों ने आपस में बात की तो मिक्की से टीनू कौए के बारे में पता चला। सब ने मिक्की से कहा कि-, "तुम्हारी मूर्खतापूर्ण सोच से सारी व्यवस्था भँग हो गयी लेकिन अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। हम लोग इसे फिर से ठीक कर सकते हैं। मिक्की को भी पछतावा था। सबने मिलकर उस दुष्ट कौए को वहाँ से भगा दिया और सुख से रहने लगे।

संस्कार सन्देश- 
हमें कभी किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। हमेशा अपने बुद्धि-विवेक से काम लेना चाहिए।

लेखिका-
डाॅ० सीमा द्विवेदी
कम्पोजिट स्कूल कमरौली  
जगदीशपुर (अमेठी)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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