ऋतुराज बसंत
दिनकर ने करवट ली,
धरती ने ली अंगड़ाई।
सुर्ख गुलाबों ने पलकें खोली,
देख पराग, तितलियाँ भी डोली।
बीजों ने जन्म दिया पौधों को,
धरती ने उन्हें गोद लिया।
धूप ने दी गर्माहट,
बारिश ने सींच लिया।
हवाओं ने झुलाया झूला,
आसमां ने हाथ बढ़ा दिया।
यूँ धीरे-धीरे बसन्त जवान हुआ।
आहट पाकर, बसुन्धरा इठलाई।
रंग-बिरंगे परिधान पहन,
परियाँ भी धरती पर उतर आयीं।
नए वस्त्र डाल तन पर
वृक्ष लगे इतराने।
भौंरे सुगन्ध पाकर
पुष्पों को लगे सताने।
हरी-हरी दूब धरती पर उग आई।
देख रूप खुद का प्रकृति है मुस्काई।
भौंरा पूछे फूल-फूल से जाकर,
रंगत कैसी चहुँओर है छाई??
किसने जादू की ये छड़ी घुमाई???
बेरंग सी धरा में फिर से नई रंगत आई।।
रचयिता
अनीता ध्यानी,
प्राथमिक विद्यालय देवराना,
विकास खण्ड-यमकेश्वर,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
धरती ने ली अंगड़ाई।
सुर्ख गुलाबों ने पलकें खोली,
देख पराग, तितलियाँ भी डोली।
बीजों ने जन्म दिया पौधों को,
धरती ने उन्हें गोद लिया।
धूप ने दी गर्माहट,
बारिश ने सींच लिया।
हवाओं ने झुलाया झूला,
आसमां ने हाथ बढ़ा दिया।
यूँ धीरे-धीरे बसन्त जवान हुआ।
आहट पाकर, बसुन्धरा इठलाई।
रंग-बिरंगे परिधान पहन,
परियाँ भी धरती पर उतर आयीं।
नए वस्त्र डाल तन पर
वृक्ष लगे इतराने।
भौंरे सुगन्ध पाकर
पुष्पों को लगे सताने।
हरी-हरी दूब धरती पर उग आई।
देख रूप खुद का प्रकृति है मुस्काई।
भौंरा पूछे फूल-फूल से जाकर,
रंगत कैसी चहुँओर है छाई??
किसने जादू की ये छड़ी घुमाई???
बेरंग सी धरा में फिर से नई रंगत आई।।
रचयिता
अनीता ध्यानी,
प्राथमिक विद्यालय देवराना,
विकास खण्ड-यमकेश्वर,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
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