निर्गुण पद
चल रे! मन अब शांति निकेत।
जग की माया का रूप सजीला,
तेरा वैभव प्रकटे आत्म अकेला।
मृग सम भरमत नित क्यों रेत?
काया कंचन काम कलुष सब,
वृथा भरम है जाल अगम सब।
श्रद्धा साँची उपजे अन्तर खेत।
तितिक्षा योग ज्ञान सत धारा,
विकसै आतम ज्योति अपारा।
बंधन बाँधे काहे अब तो चेत।
चल रे मन अब शान्ति निकेत।
जग की माया का रूप सजीला,
तेरा वैभव प्रकटे आत्म अकेला।
मृग सम भरमत नित क्यों रेत?
काया कंचन काम कलुष सब,
वृथा भरम है जाल अगम सब।
श्रद्धा साँची उपजे अन्तर खेत।
तितिक्षा योग ज्ञान सत धारा,
विकसै आतम ज्योति अपारा।
बंधन बाँधे काहे अब तो चेत।
चल रे मन अब शान्ति निकेत।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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