आशा की रसबूँद

मरुथल की रेतीली रज कण में,
जब भावों की जल बूँद गिरेगी।
मन के कोने हरित हरित सी,
फिर आशा की रसबूँद झरेगी।

जीवन के मधुरिम सपनों में,
हमने मन के चित्र बनाए हैं।
चलते चलते थकते पग, लेकिन
हम नहीं अकिंचन घबराए हैं।
सुरभित अन्तर मधुमास लिए,
वह मंजिल तो कभी मिलेगी।
जब भावों की जलबूँद गिरेगी।

देख रहा हूँ इस जग के आँगन,
विपदाओं के बादल गरज रहे।
कुछ प्यासे बिन जल के नीरस,
रेतीले से तट पर हैं तरस रहे।
चाह रहा हूँ, ले आऊँ जलधारा,
तब अधरों की प्यास मिटेगी।
फिर भावों की जलबूँद गिरेगी।

हिमगिरि से जो बह बह आती है,
वह जग में सुरसरि बन जाती है।
भावों से उमड़ी निकली धारा,
कवियों की कविता बन जाती है।
मानव मन को ज्योतित करने,
अतिमानस की ज्योति जलेगी।
जब भावों की जलबूँद गिरेगी।।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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