राष्ट्र निर्माता शिक्षक
विद्यालय रूपी उपवन के, पुष्पों में मुस्कान भरो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
भावी भारत के निर्माता, भारत भाग्य नियंता हो।।
निर्माण कार्य हाथों में है, शिक्षक तुम अभियंता हो।।
बनकर वशिष्ठ व संदीपन, वन राम कृष्ण निर्माण करो ।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
यदि चाहो भारत वैभव को, पुनः यहाँ लौटा सकते हो।।
अपने ज्ञान उजाले से, भारत को फिर चमका सकते हो।।
दृढ़ निश्चल होकर, होकर जन-जन में अब अभिनव अभिज्ञान भरो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
ज्ञान बिपाशा से मूर्छित हो, जग मुरझाया लगता है।।
अधिगम भूख से तड़प रहा, यह बस हाथों को ही मिलता है ।।
ज्ञान सुधा से अमर करो, तुम ज्ञान का इनमें प्राण भरो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
गुरु हो गुरुतर दायित्वों का, बोध तेरे हाथों में सक्षम हो।।
बाधाओं से लड़ने को वह हाल है,
तेरे हाथों में नई-नई तकनीकों से अब अध्ययन को आसान करो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
जैसे कुंदन के तपने से, सुंदर रूप निकलता है।।
जैसे पंकज कीचड़ में भी सुंदरतम ही दिखता है।।
वैसे गढ़ गढ़ कल बालक मिट्टी को कुंभकार का काम करो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो ।।
रचयिता
पंकज सिंह "पंकज",
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लौधना,
विकास खण्ड-सरसवां,
जनपद-कौशाम्बी।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
भावी भारत के निर्माता, भारत भाग्य नियंता हो।।
निर्माण कार्य हाथों में है, शिक्षक तुम अभियंता हो।।
बनकर वशिष्ठ व संदीपन, वन राम कृष्ण निर्माण करो ।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
यदि चाहो भारत वैभव को, पुनः यहाँ लौटा सकते हो।।
अपने ज्ञान उजाले से, भारत को फिर चमका सकते हो।।
दृढ़ निश्चल होकर, होकर जन-जन में अब अभिनव अभिज्ञान भरो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
ज्ञान बिपाशा से मूर्छित हो, जग मुरझाया लगता है।।
अधिगम भूख से तड़प रहा, यह बस हाथों को ही मिलता है ।।
ज्ञान सुधा से अमर करो, तुम ज्ञान का इनमें प्राण भरो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
गुरु हो गुरुतर दायित्वों का, बोध तेरे हाथों में सक्षम हो।।
बाधाओं से लड़ने को वह हाल है,
तेरे हाथों में नई-नई तकनीकों से अब अध्ययन को आसान करो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो।।
जैसे कुंदन के तपने से, सुंदर रूप निकलता है।।
जैसे पंकज कीचड़ में भी सुंदरतम ही दिखता है।।
वैसे गढ़ गढ़ कल बालक मिट्टी को कुंभकार का काम करो।।
शिक्षक माली तुम उपवन के, जल देकर कल्याण करो ।।
रचयिता
पंकज सिंह "पंकज",
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लौधना,
विकास खण्ड-सरसवां,
जनपद-कौशाम्बी।
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