बेटी की अभिलाषा

बेटा सबको प्यारा होता है
वो आँखों का तारा होता है
हम सबकी यह सोच है कि
ये जीवन का सहारा होता है,

आज मैं बहुत खुश हूँ कि
दो बेटों से मेरा घर बसा है
फिर भी ईश्वर से नाखुश हूँ
क्योंकि मन अब भी उदास है,

मैंने बेटों से तो घर भर लिया
पर बेटी बगैर जीवन खाली है
सुख की अनुभूति तब होती है
जब कोई बेटी "पापा" बोलती है,

मैंने बेटी को जन्म नहीं दिया
पर यह मेरे बेटों से बढ़कर है
यह पायल की मधुर-छुनमुन है
यह संगीत का सरगम-धुन है,

अभिलाषा थी जो भी मन में
इस बेटी से ही मैंने पाया है
अब सोच हमारी पक्की है
यह बेटी है न कि पराई है,

बेटा अगर कुल-दीपक है तो
बेटी भी घर का दीया-बाती है
अगर शान हमारा बेटा है तो
हमारी पहचान भी तो बेटी है।
           
रचयिता
चैतन्य कुमार,
सहायक शिक्षक,
मध्य विद्यालय तीरा,
ग्राम+पत्रालय:- तीरा खारदह,
प्रखण्ड:- सिकटी,
भाया:- कुर्साकाँटा,
जिला:- अररिया,
राज्य:- बिहार।

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