धर्म

भटक रहा है मनुष्य
उस क्षणिक सुख के लिए
जिस सुख की चाह में
वह धर्म भुलाए बैठा है

चेहरे पर यहाँ सभी के
धर्म के मुखौटे हैं
बाहर से दिखते बड़े
अन्दर से कर्म खोटे हैं

जब मनुष्य लोभ स्वार्थ में
विजय सुख चाहता है
तब ही मनुष्य धर्म के
मार्ग पर डगमगाता है

धर्म कहीं रुकना नहीं
जीवन भर चलने में है
इस जीवन का सच्चा धर्म
सेवामय जीवन में है।

रचयिता
प्रतिभा चौहान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गोपालपुर,
विकास खंड-डिलारी,
जनपद-मुरादाबाद।

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