अन्नदाता

धरती का सीना चीरकर, खून, पसीना जलाकर
हर मौसम की मार झेलकर फसल को उगाकर
खुद भूखा रहता है पर खुश रहता है औरों को खिलाकर
उसकी मेहनत व गरीबी पर किसी का नहीं ध्यान है।
अन्नदाता इसीलिए परेशान व हैरान हैं
वह सर्दी, वर्षा व कड़ी धूप में जब चलता है
तब जाकर सबके घरों में चूल्हा जलता है
 कर्ज में डूबकर, दुनिया से ऊबकर
हम सबके लिए दे देता अपनी जान है
कहने को तो वो बस एक बूढ़ा किसान है
पर सच तो है वह भारत की आन, बान, शान है।
ऐसे अन्नदाता को आनन्द का प्रणाम है।।
               
रचयिता
सुनील कुमार आनन्द,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बाबा मठिया,
विकास खण्ड-वजीरगंज,
जनपद-गोण्डा।

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